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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / ३५
विभाग किए और प्रत्येक विभाग में ३२ श्लोकों की रचना की। इसमें एक विशेषता यह है कि प्रत्येक बत्तीसी के अंतिम श्लोक में परमानन्द शब्द आया है। इस ग्रंथ पर उपाध्यायजी ने " " तत्त्वार्थ दीपिका' नामक स्वोपज्ञ वृत्ति रची। टीका की श्लोक संख्या मिलाकर कुल ५५०० श्लोकों का सटीक ग्रंथ बना।
(8) नयोपदेश -
यशोविजयजी ने इस ग्रंथ की सटीक रचना की है। इसमें सात नयों का स्वरूप समझाया है।
(५)
प्रतिमाशतक
उपाध्याय यशोविजयजी ने १०४ श्लोकों में इस ग्रंथ की टीकासहित रचना की। इस ग्रंथ में मुख्य चार वादस्थान हैं- (१) प्रतिमा की पूज्यता ( २ ) क्या विधिकारित प्रतिमा की ही पूज्यता है (३) क्या द्रव्यस्तव में शुभाशुभ मिश्रता है ( ४ ) द्रव्यस्तव पुण्यरूप है या धर्मरूप है।
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तर्कबाणों से प्रतिमालोपकों की मान्यता को छिन्न-भिन्न करने के बाद द्रव्यस्तक की सिद्धि के विषय में एक के बाद एक आगम प्रकरण पाठों के प्रमाण दिए हैं। जैसे नमस्कार महामंत्र तथा उपधान विधि के विषय में महानिशीथ का पाठ, भगवतीसूत्रगत चमर के उत्पाद का पाठ, सुधर्मा - सभा के विषय में ज्ञातासूत्रगत पाठ, आवश्यक निर्युक्तिगत अरिहंतचेईआणं सूत्रपाठ सूत्रकृतांगगत बौद्धमत खंडन, राजप्रश्नीयउपांगगत सूर्याभदेवकृत पूजा का पाठ, महानिशीथगत सावद्याचार्य और श्रीवज्र आर्य का दृष्टांत, द्रव्यस्तव के विषय में आवश्यक निर्युक्तिगत पाठ, परिवंदन आदि के विषय में आचारांग सूत्र का पाठ प्रश्नव्याकरणटीका गत सुवर्णगुलिका का दृष्टान्त, द्रौपदीचरित्र के विषय में ज्ञाताधर्म कथा का पाठ, शाश्वत प्रतिमा के शरीरवर्णन के विषय में जीवाभिगम सूत्र का पाठ, प्रतिमा और द्रव्यलिंगी का भेद बताने वाला आवश्यकनिर्युक्ति का पाठ, पुरुषविजय के विषय में सूत्रकृतांग का पाठ । विस्तृत आगमपाठ के अलावा पूरे ग्रंथ में सौ के लगभग ग्रंथों के चार सौ से अधिक साक्षीपाठ दिए हैं। इस ग्रंथ में ध्यान, समापत्ति, समाधि, जय आदि को प्राप्त करने के उपाय स्थान-स्थान पर बताये हैं।
८. यशोविजयजी नाम्ना तत्चरणाम्भ्योजसेविना । द्वात्रिंशिकानां विवृतिश्चक्रे तत्त्वार्थ दीपिका - द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका की प्रशस्ति के नीचे का श्लोक
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