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४२४ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
दोनों दृष्टियों से व्यर्थ है, परंतु कोई एक देश करता है तो दूसरा कैसे बच सकता है । मानवता के प्रति सबसे बड़ा अन्याय उसने किया जिसने अणु अस्त्रों के निर्माण में पहल की। शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा में मानव अपनी ही विनाश लीला का खेल खेल रहा हैं। महामूर्ख मानव खुद अपने ही हाथों अपनी चिता तैयार कर रहा है।
लगभग ६० वर्ष पूर्व हिरोशिमा में अमेरिका ने पहला अणुबम का विस्फोट किया था। उस समय ७८१५० व्यक्ति तो उसी क्षण मारे गये थे तथा ३७४५२ व्यक्ति उस विकिरण में जलकर सदा के लिए अपंग बन गए थे। जो १०६००० बचे थे उन पर भी रेडियोधर्मिता का असर हुआ। कुछ व्यक्तियों की भूल का परिणाम पूरी मानवता को भोगना पड़ता है। अणुयुद्ध का परिणाम कितना भयंकर है, इसकी कल्पना ही कंपन पैदा कर देती है। समझ में नहीं आता है कि मनुष्य नवनिर्माण चाहता है फिर भी प्रलय के साधनों का संग्रह क्यों कर रहा है ? सामूहिक नरसंहार के लिए रोग के जीवाणु, विषाणु बम, जहरीले रसायन व गैसें, दूर-मारक मिसाईलें, मृत्यु किरणों और लेसर किरणों से युक्त ऐसे-ऐसे हथियार बन गये हैं कि जिनका उपयोग विश्व का अस्तित्त्व और मानव सभ्यता का नामोनिशान मिटा सकता है।
भारत और पाकिस्तान के पारस्परिक संदेह के कारण एक ओर जहाँ पाकिस्तान को भयंकर शस्त्रों का भंडार भरना पड़ रहा हैं वही दूसरी ओर भारत को भी बहुत सारा धन अपनी सुरक्षा दृष्टि से खर्च करना पड़ रहा है । अपने शस्त्र आप बनाने वाले देशों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। शस्त्रों की इस प्रतिस्पर्धा को देखकर लग रहा है कि दुनिया युद्ध के विनाशकारी मैदान में तैयार खड़ी है।
आयुर्वेद में दवा के सन्दर्भ में कहा गया है दवा वह है कि जो लेने पर नये रोग पैदा न करे और पुराने रोग को भी शनैः-शनैः निर्मूल कर दे। औषध उसी का नाम है। वह दवा किस काम की जो रोग मिटाने की बजाय नये रोग को जन्म दे । हिंसा एक ऐसी दवा है जिससे ऐसा लगता है कि समस्या सुलझ रही है, बीमारी मिट रही है किन्तु उसकी प्रतिक्रिया इतनी भयंकर होती है कि अनेक नई बीमारियाँ पैदा हो जाती है हम ऐसी दवा की खोज करें जो नई बीमारी पैदा न करे और वह दवा है अहिंसा। युद्ध समस्या का समाधान नहीं है। व्यक्ति को अन्त में अहिंसा की शरण में जाना ही पड़ता है । शान्ति के लिए समझौता करना ही पड़ता है।
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