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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / ४२३
उनके साथ जिस प्रकार अन्याय किया जा रहा है, हम उसके दुष्परिणाम से कैसे बच सकते हैं। प्राणियों के विनाश से अपना विकास मानने वाले मानव आज अपने ही हाथों से अपने लिए गढ्ढा खोद रहा है। समग्रता के मानवता के विनाश का आह्वान कर रहें हैं। उपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार प्रदूषण से बचने के लिए, प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है अहिंसा तथा अपरिग्रह के सिद्धान्त का प्रचार प्रसार किया जाए। साथ ही जन-जन के मन में वृक्षों एवं वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा और वात्सल्य का भाव उत्पन्न हो। उनके प्रति आत्मौपम्य की भावना का विकास हो । जैसा आत्मा मुझमें है वैसी ही आत्मा पशु पक्षियों और वनस्पति आदि में है । इस भावना का प्रचार हो साथ ही इच्छाओं को सीमित किया जाय और परिग्रह की सीमा निर्धारित की जाय । अल्पेच्छा अल्प हिंसा और अल्पपरिग्रह इस जीवन शैली को प्रतिपादित किया जाए तो प्रदूषण की समस्या बहुत कुछ हल हो सकती है।
(६)
शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा :
जब तक मनुष्य में आत्मानुशासन था, असंग्रही था, आध्यात्मिक तत्त्वों के प्रति आस्था थी, तब तक वह निर्भय था । इसका अर्थ यह है कि वह शस्त्रहीन था। भय और शस्त्र में कार्यकारण सम्बन्ध है | जहाँ भय होता है वहाँ शस्त्र का निर्माण होता है। जब आत्मानुशासन घटा, परिग्रह बढ़ा, दूसरों के 'स्व' को हड़पने का मनोभाव बना, आध्यात्मिक तत्त्वों के प्रति आस्था उठी, तब भय का वातावरण बढ़ा, शस्त्रों की परम्परा का जन्म हुआ है। वर्तमान में सर्वाधिक प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हो रहा है।
शस्त्र से शस्त्र को परास्त करने की वृत्ति से कुछ समय के लिए युद्ध को टाला जा सकता है किंतु उसके परिणाम को नहीं टाला जा सकता है। शस्त्र निष्ठा के साथ-साथ जो अशान्ति शिथिलता और आतंक पैदा होता है, वह पूरे विश्व की शांति को भंग कर देता है। निरंतर एक राष्ट्र दूसरे राष्ट के प्रति आशंकित, भयभीत रहते हैं। मनुष्य के मन में भय होता है इसलिए सहज ही उसमें शस्त्रनिष्ठा होती है। अवसर पाकर वह शस्त्र निष्ठा अधिक प्रबल हो जाती है। चीन ने आक्रमण किया और भारत की शस्त्र निष्ठा प्रबल हो गई। शस्त्र बनाने की प्रतिस्पर्धा शुरु हो गई। रुस, चीन और अमेरिका में अस्त्र-शस्त्र की प्रतिस्पर्धा है। यदि युद्ध छिड़ता है तो कोई भी सुरक्षित नहीं है और यदि युद्ध नहीं होता है तो आण्विक शस्त्रों का निर्माण कोरा अपव्यय है। इसका निर्माण
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