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________________ ४००/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री कठिनाईयों, उलझनों, विपत्तियों का एकमात्र कारण मनुष्य के दृष्टिकोण तथा भावनात्मक स्तर का विकृत हो जाना ही है। हमें यह जान लेना चाहिये कि ऊँचाई हमेशा गंभीरता के साथ पैदा होती है। यदि ऊँचे भवन को खड़ा करना है तो गहराई में जाना होगा। यदि उस प्रसाद को बालू की नींव पर खड़ा कर दें या बिना नींव के खड़ा कर दें, तो वह टिकेगा नहीं, ढह जायेगा। मजबूत मकान के लिये गहरी नींव की आवश्यकता होती है। गहराई के बिना ऊँचाई सम्भव नहीं है। भौतिकता के भवन को यदि ऊँचा उठाना है, सुख और शांति का जीवन जीना है तो अध्यात्म की गहराई में भी हमें जाना होगा। इस सन्दर्भ में विनोबा जी०६° ने 'आत्मज्ञान और विज्ञान' नामक पुस्तक में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि आज विज्ञान के कारण हम लोगों के हाथों में अत्यधिक शक्ति आ गयी है। लेकिन उसका उपयोग कैसे किया जाय, यह तो आत्मज्ञान (अध्यात्म) ही बतलाएगा। घोड़े को काबू में रखें और उस पर लगाम चढ़ाये, तभी आप उस पर चढ़कर चाहे जहाँ पहुँच सकते हैं। विज्ञान घोड़ा है और आत्मज्ञान है उसकी लगाम। अगर घोड़े को लगाम नहीं रही, तो सवार के उस पर बैठने की जगह घोड़ा ही सवार की छाती पर सवार हो जाएगा। इसी तरह विज्ञान को भी आत्मज्ञान की अर्थात् अध्यात्म की लगाम न रही, तो विज्ञान दुनिया का संहार कर डालेगा। यदि उसे आत्मज्ञान की जोड़ दे दी जाय, तो इसी भू पर स्वर्ग उतर आयेगा। आज के युग की मांग है कि विज्ञान जितनी तीव्रता से गति कर रहा है उसी अनुपात में अध्यात्म की भी वृद्धि होनी चाहिए तो ही समस्याओं का निराकरण होगा। आज विश्वशांति के नाम पर कितने ही प्रयत्न अपने ढंग से चल रहे हैं। राजनैतिक क्षेत्र में विश्वसंघ का संगठन खड़ा किया गया है। इसका उद्देश्य अच्छी दुनिया की रचना करना है। रुस समर्थित शांति परिषद और अमेरिका समर्थित शान्ति सेना भी अपना यही उद्देश्य बताते है। इस प्रकार विभिन्न स्तरों पर चल रहे प्रयत्नों के होते हुए भी आशाजनक परिणाम सामने नहीं आए। उसका कारण यही है जिस आध्यात्मिक स्तर पर यह प्रयत्न किये जाने चाहिये थे, उसे नहीं अपनाया गया। भौतिक स्तर पर किये गये प्रयत्न क्षणिक लाभ ही देते है। जब तक आध्यात्मिक स्तर पर प्रयत्न नहीं किये जायेंगे तब तक ठोस परिणाम सामने नहीं आयेंगे। केवल त्तों का सिंचन करने से वृक्ष फलता -फूलता नहीं है, विकसित नहीं होता है। सिंचन तो मूल में ही करना पड़ता है। आज या जब कभी ७६०. आत्मज्ञान और विज्ञान पृष्ठ - ६५-६६ - विनोबा भावे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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