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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३६६
नवम अध्याय
उपसंहार आधुनिक वैश्विक समस्याओं के निराकरण में
अध्यात्मवाद का अवदान
विश्वव्यवस्था की वर्तमान स्थिति पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे कि आज समूचा विश्व अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। बढ़ता हुआ प्रदूषण, शास्त्रों की प्रतिस्पर्धा, युद्ध का उन्माद, अपराधों की अभिवृद्धि, जनसंख्या विस्फोट, राष्ट्रों में प्रभुत्व विस्तार की भावना, भोगवादी दृष्टिकोण, मादक वस्तुओं के सेवन में बढ़ती हुई प्रवृत्ति, उपभोक्तावादी संस्कृति का विकास आदि अनेक समस्याएँ अपना विकराल रूप धारण किए हुए है। जिधर भी दृष्टि जाए उधर अभाव, असंतोष, भय, चिंता, क्लेश, कलह, कदाग्रह, भ्रष्टाचार एवं अनैतिक आचरण दृष्टिगोचर होता है।
__ आज के युग के मानव की शारीरिक सुरक्षा, सुख एवं सुविधा के लिए अनेक प्रकार के प्रयास चल रहे हैं। विज्ञान के क्षेत्र की मूर्धन्य प्रतिभाएँ इस लक्ष्य की पूर्ति में लगी हुई है। बैलगाड़ी पर चलने वाला मनुष्य एक ओर राकेट स्पूतनिक और हवाई जहाज के माध्यम से अन्तरिक्ष की यात्रा कर रहा है, तो दूसरी ओर समुद्र की गहराई में प्रवेश कर गया है। मशीनों और यंत्रों का चरम विकास हुआ है। स्थिति ऐसी बन रही है कि युद्ध में भी आदमी नहीं उसकी बुद्धि ही लड़ेगी। मनुष्य उपकरण प्रधान हो गया है। लेकिन फिर भी मानव जाति में तनावों एवं अशांति की इतिश्री नहीं हो रही है। जहाँ धन वैभव तथा भोग-विलास के साधन ज्यादा है, वहीं शस्त्रों की प्रचुरता हैं, दुःख और समस्याओं का अम्बार लगा हुआ हैं। शिक्षा और सुखसुविधा के साधनों का चहुंमुखी विकास होने पर भी व्यक्ति अशान्त क्यों? इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने से निष्कर्ष यह निकलता है कि मनुष्य की व्यक्तिगत एवं सामूहिक समस्त समस्याओं,
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