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३७२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
१. अनन्तज्ञान २. अनन्तदर्शन ३. अव्याबाधसुख ४. अनन्तचारित्र ५. अक्षयस्थिति ६. अरूपीपन और ७. अगुरुगघु अनन्तवीर्य। सिद्ध का सामान्य स्वरूप बताने के बाद अब हम विभिन्न आचार्यों के परमात्मा के विषय में जो तथ्य हैं, उन्हें प्रस्तुत करेंगे।
आचार्य कुन्दकुन्द ने नियमसार में प्रथम सयोगी केवली का वर्णन करते हुए कहा है- "केवली भगवान् स्वपर प्रकाशक केवलज्ञान के धारक होते हैं, अर्थात् सर्वद्रव्य और उनकी सर्वपर्यायों को जानते हैं, और देखते हैं, यह व्यवहारनय का कथन है, किन्तु निश्चय नय से तो केवलीज्ञानी आत्मा को (स्वयं) देखते और जानते हैं।"७०३ इस प्रकार यहाँ उन्होंने परमात्मा के विशिष्ट लक्षण केवलज्ञान और केवलदर्शन को लेकर चर्चा की है।
____ आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार- "केवलज्ञानी को ज्ञान तथा दर्शन युगपत् वर्तते हैं। उन्होंने दृष्टांत देकर समझाया कि जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश और ताप युगपत् होता है, इसी तरह केवलज्ञानियों के ज्ञान तथा दर्शन युगपत् होते हैं।"७०४ आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रणीत प्रवचनसार में कहा गया है- “अर्हत् भगवंत को उस काल खड़े रहना, बैठना, विहार और धर्मोपदेश, स्त्रियों के मायाचार की भाँति स्वाभाविक ही प्रयत्न बिना ही होता है।"७०५ कहने का आशय यह है कि उनमें इच्छापूर्वक कोई वर्तन नहीं होता है, सहज ही होता है।
__ केवलज्ञानी के आयुष्य का क्षय होने पर शेष प्रकृतियों का सम्पूर्ण नाश हो जाता है, फिर वे समय मात्र में लोकाग्र पर पहुँच जाते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने सिद्ध परमात्मा को करण परमात्मा कहा है। सिद्धों का स्वरूप विवेचित करते हुए उन्होंने कहा है- “सिद्ध जन्म-जरा-मरण से रहित, परम, तीनों काल में निरूपाधि स्वरूपवाले होने के कारण आठ कर्म रहित है, शुद्ध है, ज्ञानादि चार स्वभाव वाला है, अक्षय, अविनाशी और अच्छेद्य है।"७०६
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जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं । केवलणाणि जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं ।।१५६ | शुद्धोपयोगाधिकार-नियमसार जुगवं वट्टइ गाणं केवलणाणिस्स दंसणं च तहा। दिणयरपयासतावं जह वट्टइ तह मुणेयव्वं ।।१६०। वही ठाणणिसेज्जविहारा धम्मुवदेसो य णियदयो तेसिं। अरहंताणं काले मायाचारो पव्व इत्थीणं ।।४४ ।। प्रवचनसार-आचार्य कुन्दकुन्द जाइजरमरणरहियं परमं कम्मट्ठवज्जियं सुद्धं णाणाइचउसहावं अक्खथमविणासमच्छेयं ।।१७७ ।।-शुद्धोपयोगाधिकार-नियमसार
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