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________________ ३६४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री उत्कृष्ट अन्तरात्मा में मात्र मोक्ष पुरुषार्थ ही रहता है, वह धर्म को मोक्षपुरुषार्थ का मात्र साधन मानता है।६६५ अन्तरात्मा के लिए हितशिक्षाएँ बहिरात्मा से अन्तरात्मा बनने के लिए सूचना रूप कुछ हितशिक्षाएँ उ. यशोविजयजी ने अध्यात्मसार में उल्लेखित की हैं, जिन्हें हम प्रस्तुत कर रहे हैं १. सर्वप्रथम उ. यशोविजयजी ने अन्तरात्मा की कोटि में आने के लिए महत्त्वपूर्ण लक्षण बताते हुए कहा है कि साधक आगमतत्त्व का निश्चय करके हमेशा श्रद्धा और विवेकपूर्वक यत्न करे। लोकसंज्ञा का त्याग करे। आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है कि साधक किसी की निंदा नहीं करे। "दोष वादे च मौनं" इस प्रकार की स्वाभाविक प्रकृति रखे। पापियों के प्रति (बहिरात्मा) धिक्कारभाव नहीं रखे, मध्यस्थ भाव रखे। गुणवानों के प्रति अहोभाव, आदर के साथ ही अल्पगुणी पर प्रीति रखें। बालक के पास से भी हितवचन ग्रहण करना, नम्रता रखना। पर की आशा का त्याग करना, साथ ही संयोगों को बंधनरूप जानना। * ; निश्चित्यागमतत्त्वं तस्मादुत्सृज्य लोकसंज्ञां च श्रद्धाविवेक सारं यतितत्यं योगिना नित्यं ।।३८ ।। निंद्यो न कोऽपि लोकः पापिष्ठेष्वपि भवस्थितिश्चिन्त्या।। पूज्या गुणगरिमाढ्या धार्यों रागो गुणलवेऽपि।।३६ ।। ग्राह्य हितमपि बालादालापैर्दुर्जनस्य न द्वेष्यम्। त्यक्तव्या च पराशा पाशा इव संगमा ज्ञेयाः।।४०।। - अनुभवाधिकार-२०, अध्यात्मसार, उ. यशोविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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