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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३३७ हो गया है यथार्थ ज्ञान होने के बाद व्यक्ति की ज्ञान शक्ति व्यापक होगी परंतु उसे अहम् नहीं होगा। वह किसी को अल्पज्ञ जानकर उसका अपमान नही करेगा न अपने आपको ज्ञानी मानकर उसका अहंकार करेगा। ज्ञाता द्रष्टा भाव या साक्षी भाव की साधना करते करते व्यक्ति का अहम् और मम् दोनों का विलय हो जाता है।
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