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२८ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
जिनशासन की प्रभावना
मोहब्बतखान के समक्ष अठारह अवधान का प्रयोग
आगरा से विहार करके नयविजयजी अपने शिष्यसमूह के साथ अहमदाबाद में आए। उस समय दिल्ली के बादशाह औरंगजेब की आज्ञा में मोहब्बतखान अहमदाबाद में राज करता था। एक बार मोहब्बतखान की सभा में यशोविजयजी के अगाध ज्ञान, तीव्रबुद्धि, प्रतिभा तथा अद्भुत स्मरणशक्ति की प्रशंसा हुई। यह सुनकर मोहब्बतखान को मुनिराज से मिलने की तीव्र उत्कण्ठा हुई। उसने जैनसंघ द्वारा यशोविजयजी को स्वयं की सभा में पधारने की विनती की। निश्चित दिन और समय पर यशोविजयजी अपने गुरुमहाराज साधुओं तथा अग्रगण्य श्रावकों के साथ मोहब्बतखान की सभा में पहुँचे। वहाँ उन्होंने विशाल सभा के समक्ष अठारह अवधान का प्रयोग करके बताया। इस प्रयोग में अठारह अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा कही गयी बात को बाद में क्रमानुसार वापस कहना होता है। इसमें पादपूर्ति करना, इधर-उधर शब्द कहे हों तो याद रखकर शब्दों को बराबर जमाकर वाक्य कहना तथा दिए गए विषय पर तुरंत संस्कृत में श्लोकरचना करनी होती है।
यशोविजयजी की स्मरण शक्ति, कवित्व शक्ति और विद्वत्ता से मोहब्बतखान बहुत प्रभावित हुआ। उसने यशोविजयजी का उत्साहपूर्वक बहुत सम्मान किया, जिससे जिनशासन की बहुत प्रभावना हुई ।
उपाध्याय पद की प्राप्ति
काशी और आगरा में किए हुए विद्याभ्यास के कारण, वाद में विजय प्राप्त करने के कारण तथा अठारह अवधान के प्रयोग से यशोविजयजी की ख्याति चारों तरफ फैल गई थी। इनकी कवित्वशक्ति उत्तरोत्तर विकसित हो रही थी । इनका शास्त्राभ्यास भी वृद्धिगत हो रहा था। इन्होंने वीसस्थानक तप की आराधना भी आरम्भ कर दी थी। हीरविजयजी के समुदाय में गच्छाधिपति विजयदेवसूरि के कालधर्म के बाद गच्छ का भार विजयप्रभसूरि पर आया । अहमदाबाद के संघ ने यशोविजयजी को उपाध्याय पद देने की विनंती की। संघ की आग्रह भरी विनंती को लक्ष्य में रखकर तथा यशोविजयजी की योग्यता को देखकर विजयप्रभसूरि ने उपाध्याय की पदवी यशोविजयजी को महोत्सवपूर्वक संवत् १७१८ में प्रदान की । आचार्य पद के योग्य यशोविजयजी ने प्राप्त हुई उपाध्याय की पदवी को ऐसा
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