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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३२६ आचार्य मलयगिरि आवश्यकनियुक्ति के आचार्य मलयगिरि आवश्यकनिर्यक्ति की टीका में लिखते हैं कि- सम, अर्थात् राग-द्वेषरहित मनःस्थिति और आय अर्थात् लाभा समभाव का जिससे लाभ हो, वह क्रिया सामायिक कहलाती है। सर्वजीवेषुमैत्री = साम, साम्न आयः = समायः, अर्थात् सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव की प्राप्ति सामायिक है।६१४ योगसार में कहा गया है- “राग और रोष-दोनों का परिहार करके जो जीव समभाव को जानता है, वही सामायिक को जानता है।" अभिधानराजेन्द्रकोष६५ में सामायिक की कई प्रकार से व्याख्याएँ दी हैं। सम् को सम्यक् अर्थ में मानकर सामायिकम् इति “समानां ज्ञानदर्शनचारित्राणां आयः समायः।" इसका अर्थ यह है कि सम्यग्ज्ञान-दर्शनचारित्र के आय का साधन सामायिक है। सामायिक का दूसरा नाम 'सावद्य योगविरति' है। सामायिक में सदोष प्रवृत्तियों का त्याग और निर्दोष प्रवृत्तियों का आचरण किया जाता है। ____ अभिधानराजेन्द्रकोष६१६ में यह भी कहा गया है कि पापकार्यों से मुक्त होकर, दुर्ध्यान, अर्थात् आर्तध्यान और रौद्रध्यान से रहित होकर समभाव में अन्तर्मुहूर्त तक स्थित रहने का जो व्रत लिया जाता है, उसे सामायिक कहते हैं। विशेष आवश्यकभाष्य में६१७ सामायिक के तीन प्रकार बताए गए हैं-१. सम्यक्त्वसामायिक- सम्यक्त्व प्राप्ति के साथ जो आत्मा में समता के परिणाम बने रहते हैं, वह सम्यक्त्वसामायिक है २. श्रुतसामायिक- सद्ग्रन्थों का पठन-पाठन करना श्रुत सामायिक है ३. चारित्र सामायिक यह दो प्रकार की होती है-१. ईत्वरकालिक (स्वल्प समय तक)। यावत्कथिक- (जीवनपर्यन्त, जीवनभर तक सावद्य योगों का त्याग करना) सामायिक विषमतारूपी व्याधि की रामबाण औषधि है। इसका सेवन चार रूपों में किया जा सकता है। आवश्यकनियुक्ति की टीका - १०४२ वृ. -श्रीमलयगिरिसूरि अभिधानराजेन्द्रकोष -७, पृ. ७०१ सावद्यकर्ममुक्तस्य दुर्थ्यानरहितस्य च समभावो मुहूर्त तद् व्रतं सामायिका हृदय -अभिधानराजेन्द्रकोष भा. ७, पृ. ३६६ सामाइयंपि तिविहं सम्मत्त सुअं तहा चरित्त च। दुविहं चेव चरित्त अगारमणगारियं चेव । आवश्यकभाष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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