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३१४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
परम्परानुसार पन्द्रह दिन बताई गई है। प्रत्याख्यानी स्तर के कषाय के उदय होने की अवस्था में मृत्यु होने पर व्यक्ति को मनुष्यगति प्राप्त होती है।
प्रत्याख्यानीकषाय का बल समाप्त होते ही सर्वविरति प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति पापों से पूर्णतः विरत हो जाता है, किन्तु संज्वलनकषाय के उदय में रहने से वीतरागता की उपलब्धि नहीं होती है। यह कषाय वीतरागता में बाधक है।
भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को परमात्मा के प्रति राग होने के कारण चौदहपूर्वो के ज्ञाता, चारज्ञान के धारी होने पर भी वीतरागता प्रकट नहीं हुई। संज्वलन कषाय गौतमस्वामी जैसे ज्ञानी के लिए भी वीतरागता की प्राप्ति हेतु बाधक बन गया।
संज्वलन स्तर का कषाय होने पर व्यक्ति को देवगति प्राप्त होती है। इस कषाय का अधिकतम काल श्वेताम्बर-परम्परानुसार पन्द्रह दिन और दिगम्बर-परम्परानुसार अन्तर्मुहूर्त बताया गया है। इस प्रकार राग और द्वेष की अपेक्षा से कषाय दो प्रकार के होते हैं- रागरूप और द्वेषरूप। क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से कषाय के चार प्रकार भी होते हैं।
____ अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन के भेद से कषाय सोलह प्रकार के होते हैं। इन्हें परस्पर गुणा करने पर कषाय के चौंसठ भेद भी होते हैं। अध्यवसाय के आधार पर कषाय के असंख्य भेद भी संभव हैं।
- इस प्रकार आत्मा को समत्व से विचलित करने में प्रमुख भूमिका राग, द्वेष और कषाय की होती है। मिथ्यात्व, अविरति भी इनके सहयोगी हैं। इन्हें भी विषमता का कारण माना जा सकता है।
ममता के विभिन्न रूप ममता अनेक अनर्थों को उत्पन्न करती है। ममता ने अपना विस्तार सारे संसार में फैलाया है। छोटे बालक से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक में 'मेरेपन' का भाव सतत चलता रहता है। यह मेरा शरीर, यह मेरा घर, यह मेरा धन, ये मेरे माता-पिता, यह मेरा परिवार, यह मेरी पत्नी, आदि कई रूपों में हम अपने ममत्व का आरोपण परपदार्थो पर करते हैं। यह ममत्वबुद्धि जैसे-जैसे कम होती जाती है, वैसे-वैसे वैराग्य का भाव दृढ़ होता जाता है। उ. यशोविजयजी ने अध्यात्मसार में
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