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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३१३ कुटुम्ब-पालन का उत्तरदायित्व मेरा है।"५७३ वे स्वयं व्रतधारण नहीं कर सकते थे, किन्तु अन्य को इस हेतु प्रेरणा देते थे। ३. प्रत्याख्यानीलोभ - यह लोभ काजल जैसा अल्पकालिक होता है। साधनाक्षेत्र में तीव्रगति से आगे बढ़ने की भावना इस लोभ में होती है। ४. संज्वलनलोभ - इस लोभ को हल्दी की रंग क उपमा दी है, जो अल्पकाल ही रहता है। शीघ्रातिशीघ्र मुक्ति का आनंद मिले, यह संज्वलनलोभ है। जैसे-गजसुकुमाल ने दीक्षा अंगीकर करते ही प्रभु नेमीनाथ से सर्वप्रथम यह प्रश्न किया कि जल्दी से जल्दी मुक्ति कैसे प्राप्त हो?"७४ अनंतानुबंधीकषाय सम्यग्दर्शन का विघातक है और अनंतसंसार का कारण रूप है। भावदीपिका में व्यावहारिक स्तर पर अनंतानुबंधकषाय का स्वरूप बताते हुए कहा है- क्रूर, हिंसक निम्नतम लोकाचार का उल्लंघन करने वाला, सत्यासत्य के विवेक से शून्य देव, गुरु, धर्म पर अश्रद्धा रखने वाला व्यक्ति अनंतानुबंधकषाययुक्त माना गया है। अनंतानुबंधीकषाय के उदय की अवस्था में मृत्यु होने पर नरकगति प्राप्त होती है। यह कषाय एक भव की अपेक्षा से आजीवन रहता है। अप्रत्याख्यानीकषाय, अर्थात् “जो प्रत्याख्यान या व्रतग्रहण में बाधक बने।" इस कषाय के उदय होने पर व्यक्ति व्रत-नियम की उपयोगिता को समझते हुए भी आंशिक रूप से भी व्रत धारण नहीं कर सकता है। तत्त्व के सम्यक् स्वरूप को जानते हुए भी वह सत्य को आचरण में स्वीकार नहीं कर पाता है। अप्रत्याख्यानी स्तर के कषाय के उदय की अवस्था में मृत्यु होने पर व्यक्ति को तिर्यन्वगति की प्राप्ति होती है। यह कषाय अधिकतम वर्षभर रहता है। जैसे- श्रेणिक, श्रीकृष्ण आदि के व्रतग्रहण में प्रत्याख्यानीकषाय का उदय बाधक बना रहा है। प्रत्याख्यानीकषाय के उदय में व्यक्ति अणुव्रत तो धारण कर सकता है, किन्तु सर्वविरति धारण करने में यह कषाय बाधक बनता है। यह कषाय विषय, कषाय, भोगोपभोग से पूर्णतः विरत नहीं होने देता है। इस कषाय की अधिकतम् कालमर्यादा श्वेताम्बर-परम्परानुसार चार माह बताई गई है और दिगम्बर ४७३. ५७४ कषाय - पृ. ४८ कषाय - पृ. ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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