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३०६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
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८. अभिलाष - इष्टवस्तु की प्राप्ति के लिए मनोरथ करना।
ये सभी राग के ही पर्यायवाची नाम हैं, जिनकी उपस्थिति में समत्व नहीं टिक सकता है। प्रशमरति में राग की तरह द्वेष के भी आठ पर्याय शब्द बताए हैं। वे इस प्रकार हैं।५६८१.
ईर्ष्या - किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, सम्पत्ति, सुख आदि देखकर ईर्ष्या करना तथा उनके नाश हेतु दुर्भावना रखना। रोष - जब व्यक्ति के अभिमान को चोट लगती है, तब रोष का जन्म होता है। रोष या क्रोध उस माचिस की तीली के समान है, जो पहले स्वयं जलती है और फिर दूसरों को जलाती है उसी तरह क्रोधी व्यक्ति भी पहले स्वयं क्रोध की आग में जलता है, फिर दूसरों को नुकसान पहुंचाता है। दोष - चित्तवृत्ति का दूषित होना द्वेष - अनिष्ट संयोग के प्रति अन्तरंग में जो आक्रोश होता है, उसे द्वेष कहते हैं। परिवाद - पर की निंदा करना, अन्य के दोषों को देखना। मत्सर - अन्य की योग्यता को यथोचित सम्मान नहीं देना। असूया - अन्य के गुणों को सहन नहीं करना। बैर - क्रोध का अन्तरंग में अपना अड्डा जमाना, अर्थात् क्रोध का स्थायित्व बैर कहलाता है। उपर्युक्त आठों द्वेष के पर्याय हैं।
इस तरह राग और द्वेष विविध रूपों में सामने आते हैं और साधक को विषमता की ओर ले जाते हैं। अतः ज्ञानरूपी शस्त्र के प्रहार से रागरूपी योद्धा का घात कर देना चाहिए तभी मोह का साम्राज्य समाप्त होगा और समत्व का साम्राज्य प्राप्त होगा। ज्ञानरूपी सूर्य के बिना रागरूपी नदी सूखने वाली नहीं है।
प्रवचनसार में राग दो प्रकार का बताया गया है
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५६८. ईर्ष्या रोषो दोषो द्वेषः परिवादमत्सरासूयाः।
वैरप्रचण्डनाद्या नैके द्वेषस्य पर्यायाः।।१६।। वैराग्य प्र. २, प्रशरमति, उमास्वाति
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