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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ २८६ मदों का त्याग करता है। उ. यशोविजयजी कहते हैं- ज्ञानगर्भित वैराग्य वाला जीव आठ प्रकार के मदों का मर्दन कर देता है।५२४
बाहुबलि को केवलज्ञान में मद ही बाधक बना था। ३. आर्जव - आर्जव, अर्थात् मन वचन-काया की सरलता। उ.
यशोविजयजी ने सरलता की महत्ता प्रतिपादित करने के लिए 'दंभत्याग' नामक एक पूरा अधिकार अध्यात्मसार में दिया है। उ. यशोविजयजी कहते हैं- "कोई भी क्रिया 'दंभरहित होकर करना' क्योंकि यह भगवान् की आज्ञा है, इसलिए अध्यात्मरसिक साधु को अल्प दंभ करना भी उचित नहीं है। वाहण (नाव) में छोटा भी छिद्र हो, तो वह समुद्र को पार नहीं कर सकता है।"२५ दंभ का थोड़ा सा अंश मल्लिनाथ आदि के स्त्रीवेद के बंध का कारण हुआ। इसलिए साधुओं को दंभ का त्याग करके सरल बनने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि धर्म शुद्ध और सरल हृदय में ही
टीक सकता है। ४. मुक्ति - लोभ का निग्रह करना मुक्ति है। इसमें जीवन लोभ
आरोग्य लोभ, इन्द्रिय लोभ और उपभोग लोभ ये चार प्रकार के है। ५२६ मुक्ति के लिए निर्लोभता और शौच शब्द का भी प्रयोग हुआ है, आचार्य जिनदास२७ ने शौच का अर्थ धर्मोपकरण मे भी
अनासक्त भाव किया है। ५. सत्य - जिस पदार्थ की जिस रूप में सत्ता है, उस पदार्थ को उसी
रूप में जानना सम्यग्ज्ञान है और उसी रूप में बोलना सत्यवचन
५२५. मदसंमर्दमर्दनम् ५२५. कार्ये भाव्यमदभेनेत्येषाज्ञा पारमेश्वरी।।२०।। -अध्यात्मरतचित्तानां दंभः स्वल्पोऽपि
नोचितः। छिद्रलेशोऽपि पोतस्य सिंधु लंघयतामिव ।।२१।। -अ. सार. उ. यशोविजयजी परिभोगोपभोगत्वं जीवितेन्द्रियभेदतः ।
चतुर्विधस्य लोभस्य निवृत्तिः शौचमुच्यते। तत्त्वार्थसार-आचार्य अमृतचन्द्र १७. सोयं अलुद्धा धम्मोवगरणेसु बि। आवश्यकचूर्णि -अ. जिनदास
५२६.
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