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२८४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
उत्तराध्ययन" आदि आगमों में मिलता है। उत्तराध्ययनसूत्र में दसविध सामाचारी का वर्णन है१२
आवश्यकी या आवश्यिका सामाचारी - आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाने की सूचना देने सम्बन्धी आवश्यिका सामाचारी है। बाहर जाते समय 'आवश्यक', अर्थात् 'आवश्यक कार्य से बाहर जा रहा हूँ'- का उच्चारण करें। नैषेधिकी - बाहर के कार्य से निवृत्त होकर धर्मस्थान में प्रवेश करने की सूचिका रूप यह सामाचारी है। प्रवेश करते समय "नैषेधिकी" का उच्चारण करना चाहिए, अर्थात् अब मुझे बाहर जाने का निषेध है। आपृच्छना - किसी भी कार्य को करने के पहले गुरुजनों से पूछना। प्रतिपृच्छना - किसी विशिष्ट कार्य के लिए गुरुजनों से
बार-बार पूछना। ___ छन्दना - लाए हुए आहार आदि के लिए अन्य साधुओं को
निमंत्रित करना। इच्छाकार सामाचारी - दूसरे साधुओं की इच्छा जानना और तदनुरूप परिचर्या करना। मिच्छाकार - स्खलना होने पर साधु को तुरंत उस भूल के लिए 'मिच्छामि दुक्कडं' कहना मिच्छाकार सामाचारी है। तथाकार - गुरु-आज्ञा का समर्थन और स्वीकार करना तथाकार सामाचारी है। अभ्युत्थान - गुरुजनों को आते देखकर उठकर सामने जाना अभ्युत्थान सामाचारी है।
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उत्तराध्ययन - १६ वाँ उत्तराध्ययन - अ. २६/ २, ३, ४
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