________________
माता-पिता
-
सुजसवेलीभास के आधार पर यशोविजयजी की माता का नाम सौभागदे ( सौभाग्यदेवी) और पिता का नाम नारायण था। वे एक व्यापारी थे। उनके दो पुत्र थे - यशवंत और पद्मसिंह परिवार बड़ा धार्मिक और आस्थावान् था।
उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / २३
पूत के लक्षण पालने में (बचपन के विषय में दंतकथा )
यशोविजयजी की माता सौभाग्यदेवी को यह नियम था कि रोज सुबह भक्तामर स्तोत्र सुनने के बाद ही भोजन ग्रहण करना। चातुर्मास में वह रोज उपाश्रय में जाकर गुरु महाराज से भक्तामर सुनती थी। यशवंत भी साथ में जाता था। एक बार श्रावण माह में मूसलाधार वर्षा हुई। लगातार तीन-तीन दिन तक पानी गिरता रहा। सौभाग्यदेवी को तीन दिन के उपवास हो गए। चौथे दिन सुबह भी जब सौभाग्यदेवी ने कुछ नहीं खाया तो बालक यशवंत ने कौतूहलवश सहज इसका कारण पूछा, तब माता ने अपने नियम की बात कही। यह सुनकर यशवंत ने कहा- "माँ, मैं भक्तामर सुनाऊँ, मुझे आता है।" यह जानकर माता को आश्चर्य हुआ। बालक ने शुद्ध भक्तामरस्तोत्र सुनाया। माता के हर्ष का पार नहीं रहा। माता ने अठ्ठम का पारणा किया। बालक यशवंत माता के साथ रोज गुरु महाराज के पास जाता था और भक्तामर सुनता था, वह उसे कंठस्थ हो गया था। बालक की ऐसी अद्भुत स्मरण-शक्ति की बात सुनकर गुरु महाराज भी आनंदित हुए।
दीक्षा
मुनि जीवन
कुणगेर (कुमारगिरि) में चातुर्मास करके सं. १६८८ में नयविजयजी कनोडु गाँव में पधारे। माता सौभाग्यदेवी ने पुत्रों के साथ उल्लासपूर्वक साधुओं के चरणों में वन्दन किया। सद्गुरु के धर्मोपदेश सुनकर यशवंत को वैराग्य हो गया, अणहिलपुर पाटण में जाकर गुरु नयविजयजी के पास यशवंत ने दीक्षा ली। इनका नाम श्री जशविजय ( यशोविजय) रखा गया । सौभाग्यदेवी के दूसरे पुत्र पद्मसिंह ने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org