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________________ २४ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री भी दीक्षा ली। उनका नाम पद्मविजय रखा। दोनों मुनियों की १६८८ में तपागच्छ के आचार्य विजयदेवसूरि के हाथ से बड़ी दीक्षा हुई। सुजसवेलीभास' में लिखा हैअहिलपुर पाटण जईजी ल्यई गुरु पासे चरित्र यशोविजय ऐहणी करीजी, थापना नामनीं तत्र । पदमसिंह बीजो वली जी, तस बांधव गुणवंत तेह प्रसंगे प्रेरियो जी ते पण थयो व्रतवंत । विजयदेव गुरु हाथनीजी, बड़ी दीक्षा हुई खास बिहुँ ते सोल अठियासियेजी करता योग अभ्यास गुरु परम्परा ३ उपाध्याय यशोविजयजी ने स्वोपज्ञ प्रतिमाशतक एवं अध्यात्मोपनिषद नामक कृति की वृत्ति में अपनी गुरु परंपरा का परिचय दिया है। इसमें उन्होंने अकबर प्रतिबोधक हीरविजयजी से अपनी गुरु परंपरा की शुरुआत की। जगद्गुरु विरुद को धारण करने वाले हीरसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य और षड्दर्शन की विद्या में विशारद ऐसे महोपाध्याय कल्याणविजयगणि हुए । उनके शिष्य शास्त्रवेत्ताओं में तिलक समान पंडित लाभविजयजीगणि हुए । उनके शिष्य पंडित शिरोमणि जितविजयजी गणि के गुरुभाई पंडित नयविजयजीगणि थे। उनके चरणकमल में भ्रमर अनुरक्त समान पंडित पद्मविजय गणि के सहोदर न्यायविशारद महोपाध्याय श्री यशोविजयगणि हुए। २. 'सुजसवेली भास' मुनि कान्तिविजयजी कृत ३. श्री हीरान्वयदिनकृति प्रकृष्टोपाध्यायास्त्रिभुवनगीतकीर्तिवृन्दाः । षट्तर्कीयदृढ़परिरंभभाग्यभाजः कल्याणोत्तरविजयाभिधा बभूवुः || १४ || तच्छिष्याः प्रतिगुणधाम हेमसूरेः श्री लाभोत्तरविजयाभिधा बभूवुः श्री जीतोत्तरविजयाभिधान श्री नयविजयौ तदीयशिष्यौ ।। १५ ।। तदीय चरणाम्बुजश्रयणाविस्फुरद्भारती प्रसाद सुपरीक्षितप्रवरशास्त्ररत्नोच्चयैः जिनागम विवेचने शिवसुखार्थिनां श्रेयसे यशोविजयवाघकैरयमकारि तत्त्व श्रमः | १६ || प्रतिमाशतक टीकाकर्तु प्रशस्तिः उपाध्याय यशोविजयजी कृत इति जगद्गुरुविरुदधारि श्री हीरविजयसूरीश्वरशिष्य षट्तर्क विद्याविशारद महोपाध्याय श्री कल्याविजयगणिशिष्य -शास्त्रज्ञ तिलकपण्डित श्रीलाभविजय गणि- शिष्य मुख्यपण्डित जीतविजयगणिसतीर्थ्यालडंकारपण्डित - श्रीनयविजय गणि चरणकनचञ्चरीक पण्डितपद्मविजयगणि सहोदर न्याय विशोरद महोपाध्याय श्री यशोविजयगणि प्रणीतं समाप्तमिदमध्यात्मोपनिषदत्प्ररणम् ।। अध्यात्मोपनिषदं - उपाध्याय यशोविजयजी कृत् Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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