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२२ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
अब प्रश्न उठता है कि इन दोनों प्रमाणों में से किस प्रमाण को आधारभूत माना जाए। चित्रपट के विषय में तो निश्चित ही है कि उनके गुरु नयविजयजी के हाथ से तैयार की हुई मूल वस्तु हमें मिलती है। 'सुजसवेलीभास' की हस्तप्रति उसके कर्त्ता के हस्ताक्षर की नहीं है, परंतु बाद में लिखाई हुई है। संभव है कि पीछे से हुई इस नकल में दीक्षा का वर्ष लिखने में कुछ भूल हुई हो । सुजसवेलीभास के रचयिता उपाध्याय यशोविजयजी के समकालीन थे और हस्तप्रति तो उसके बाद की मिलती है, जबकि नयविजयजी गणि तो यशोविजयजी के गुरु थे। इस दृष्टि से देखते हुए चित्रपट अधिक विश्वसनीय लगता है। अन्य दृष्टि से भी देखें, तो यशोविजयजी ने विपुल साहित्य की रचना की तथा जिन शास्त्रों का अभ्यास किया, उन्हें देखते हुए इतना कार्य करने के लिए ६३-६४ वर्ष की आयु कम ही होगी।
दूसरी बात, इन्होंने अनशन करके देह को छोड़ा था। अनशन करने की दृष्टि से भी यह उम्र कुछ कम लगती है । वे स्वयं तपस्वी साधु थे, बाल ब्रह्मचारी थे, योग विद्या के अभ्यासी थे, समतारस में डूबे ज्ञानी थे; इसलिए उनका आयुष्य दीर्घ होगा यह मानना अधिक उचित लगता है।
जन्म-स्थान
उपाध्याय यशोविजयजी के जन्म-स्थान का उल्लेख हमें 'सुजसवेलीभास' के आधार पर प्राप्त होता है। इसके आधार पर यशोविजयजी का जन्म - स्थान गुर्जरदेश में कनोडु नामक गाँव है । यहाँ भासकार ने यशोविजयजी के जन्म-स्थल का निर्देश नहीं किया, किन्तु यशोविजयजी ने अपने गुरु नयविजयजी के सर्वप्रथम दर्शन कनोडु में किए थे। उस समय उनके माता-पिता कनोडु में रहते थे, यह हकीकत सुनिश्चित है। संभव है कि यशोविजयजी का जन्म कनोडु में हुआ हो और इनका बालपन भी कनोडु में ही बीता हो।
जब तक इनके जन्म-स्थल के विषय में अन्य कोई प्रमाण नहीं मिलते तब तक इनकी जन्मभूमि कनोडु थी, यह मानने में कोई दिक्कत नहीं है। कनोडु उत्तर गुजरात में महेसाणा से पाटण के रास्ते पर धीणोज गाँव से चार मील की दूरी पर बसा हुआ है।
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