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२८२ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
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निरवद्य और परिमित भाषा का सावधानीपूर्वक प्रयोग करना भाषासमिति है।
एषणासमिति एषना, अर्थात् उपयोगपूर्वक अन्वेषण करना । आहार, उपकरण शय्या आदि की गवेषणा में उद्गम, उत्पादन सम्बन्धी दोषों का परिशोधन तथा ग्रहणैषणा और परिभोगेषणा में आहार आदि करते समय उसकी निंदा स्तुति नहीं करना इनकी शुद्धि और नियम की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि पदार्थों को देखने, ग्रहण करने एवं उपभोग करने में शास्त्रीय विधि के अनुसार निर्दोषता का विचार करके सम्यकू प्रवृत्ति करना ही एषणासमिति है।
गुप्ति - गुप्ति का शाब्दिक अर्थ है - रक्षा | मन, वचन और काया की . अशुभप्रवृत्तियों से रक्षा करके शुभ प्रवृत्ति में जोड़ना गुप्ति है । गुप्ति तीन प्रकार की कही गई है
आदानभाण्डमात्र निक्षेपणा समिति - वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि जितने उपकरण हैं, उन्हें विवेकपूर्वक ग्रहण करना और जीवरहित प्रमार्जित भूमि पर रखना आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति है।
उच्चार- प्रस्रवण- श्लेष्म सिंघाण जल्ल परिष्ठापनिका समिति मलमूत्र आदि पदार्थ, जो परिष्ठापन - प्रतिस्थापन के योग्य हों उन्हें, अथवा भग्नपात्र आदि को जीव रहित एकांत भूमि में परठना चाहिए।
मनोगुप्ति चार प्रकार की कही गई है- १. सत्य मनोगुप्ति २. असत्य मनोगुप्ति ३. सत्यमृषा मनोगुप्ति ४. असत्यामृषा मनोगुप्ति ।'
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मनोगुप्ति :- उत्तराध्ययन में कहा गया है कि संरम्भ, समारंभ और आरंभ में प्रवृत्त होते हुए मन को प्रयत्नपूर्वक रोकना ही मनोगुप्ति
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उत्तराध्ययन २४/२१
उत्तराध्ययन- अ. २४/२१
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