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________________ २७८/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री छोटी या बड़ी, सजीव या निर्जीव, किसी भी वस्तु को स्वामी की आज्ञा के बिना न ले, न दूसरों को प्रेरणा करे और न अदत्त ग्रहण का अनुमोदन करे। ६४ अचौर्य महाव्रत के चौवन विकल्प बताए गए हैं १. वस्तु अल्पमात्रा में २. अधिकमात्रा में ३. छोटी वस्तु ४. बड़ी वस्तु ५. सचित्त (शिष्यादि) ६. अचित्त (वस्त्र, पात्र आदि)- इन छ: प्रकार की वस्तुओं की मन, वचन तथा काया से चोरी न करे, न करवाएं, न चोरी करने वाले का अनुमोदन करे। इस प्रकार मन के अठारह वचन के अठारह और काया के अठारह, कुल चौवन विकल्प होते हैं। प्रश्नव्याकरण के अनुसार अचौर्य महाव्रत की पाँच भावनाएँ हैं१. विविक्तवास - निर्दोष स्थान की याचना करना अनुज्ञातसंस्तारक ग्रहणरूप अवग्रहयाचना - मर्यादा के अनुकूल शय्या आदि को आज्ञा लेकर ग्रहण करना शय्यासंस्तारक परिकर्म वर्जनारूप शय्यासमिति - इस भावना में शय्या संस्तारक की सजावट का निषेध किया गया है। अनुज्ञापित पान-भोजन ग्रहण करना - इस भावना में वस्त्र, पात्र, आहार आदि जो भी प्राप्त हुए, उसे गुरुजनों को समर्पित कर दे और कह दें कि आप जिसे आवश्यकता हो, उसे प्रदान करें। दशवैकालिक ६५ में स्पष्ट कहा गया है कि जो संविभाग नहीं करता है, उसकी मुक्ति नहीं होती। श्रेष्ठ वस्तु का अकेले उपयोग करना चोरी है। साधर्मिक का विनयकरना। ४४. दशवैकालिक ४, १३ प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार, अध्ययन ८ ve६. असंविभागी न हु तस्स मोक्खो, दशवैकालिक ६, २, २३ ४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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