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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / २७७ तत्त्वार्थराजवार्तिक ४८८ और तत्त्वार्थसर्वार्थसिद्धि ४८६ में एषणासमिति के स्थान पर वाक्गुप्ति का उल्लेख हुआ है। ये भावनाएँ अहिंसा को अधिक परिपुष्ट और सुरक्षित बनाने के लिए हैं। ४६० द्वितीय महाव्रत जीवनपर्यन्त के लिए सर्वमृषावाद - विरमण सत्यमहाव्रत सत्य की महत्ता बताते हुए भगवान महावीर ने कहा है कि सत्य महासागर से भी अधिक गंभीर है, चन्द्र से भी अधिक सौम्य है और सूर्यमण्डल से भी अधिक तेजस्वी है। क्रोध, लोभ, भय, हास्य, आदि मोहनीयकर्म की प्रकृतियों के वशीभूत होकर मन, वचन और काया से असत्य बोलना नहीं, बुलवाना नहीं, असत्य का अनुमोदन करना नहीं - यह सत्य महाव्रत है। साथ ही हर क्षण सावधानीपूर्वक हित, मित, पथ्य, प्रिय, सत्यवचन बोलना भी सत्य महाव्रत है। निरर्थक, अहितकारी बोला गया सत्यवचन भी असत्य है । यह महाव्रत नौ कोटियों से धारण किया हुआ होता है। इस प्रकार मन के बारह, वचन के बारह और काया के बारह कुल छत्तीस विकल्प होते हैं। इस महाव्रत की भी पाँच भावनाएँ हैं .४६१ १. वाणी का विवेक २. क्रोधत्याग ३. लोभत्याग ४. भयत्याग ५. हास्यत्याग आचारांग' _ ४६३ और प्रश्नव्याकरण' समवायांग में भावनाओं का निरूपण है। . ४६२ तृतीय महाव्रत जीवन पर्यन्त के लिए सर्वथा अदत्तादान विरमण अस्तेय महाव्रत है। उ. यशोविजयजी कहते हैं- “स्पृहारहित साधु के लिए पृथ्वी रूप शय्या है, भिक्षा में जो मिला वह भोजन है, फटे पुराने वस्त्र और वन रूप घर है, फिर भी आश्चर्य है कि साधु चक्रवर्ती से भी ज्यादा सुखी है । अस्तेय में तृष्णा की मुख्यता होती है। साधु को किसी प्रकार की कोई तृष्णा नहीं होती है। वे एक तृण भी मालिक की बिना आज्ञा के नहीं लेते हैं। दशवैकालिक में अस्तेय महाव्रत के सम्बन्ध में कहा गया है- “मुनि गाँव में, नगर में या अरण्य में, थोड़ी या बहुत, Υττ BE ४६० ४६१ ૪૬૨ ૪૬૨૩ , तत्त्वार्थराजवार्तिक ७, ४-५, ५३७ तत्त्वार्थसर्वार्थसिद्धि, पृ. ३४५ प्रश्नव्याकरण २, २ आचारांग, द्वितीय श्रुतस्कंध, १५ वाँ भावना अध्ययन समवायांग २५ वाँ समवाय प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवरद्वार, सातवाँ अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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