SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. ४७८ ४. ४७६ ४८० अतिथिसंविभागव्रत के माध्यम से दान प्रदान करते समय चार बातों को ध्यान रखना आवश्यक है - विधि, द्रव्य, दाता और पात्र । जो दान चार विशेषताओं से युक्त है, वही श्रेष्ठ सुपात्रदान है। 820 उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / २७३ चौदह नियमों का उल्लेख किया है ४७८, जिसमें सचित्त, द्रव्य, विगय, उपानह ( जूते ), वस्त्र, कुसुम, तांबूल, वाहन, शयन, विलेपन, ब्रह्मचर्य, दिशा, स्नान, भक्त - इनकी प्रतिदिन मर्यादा निश्चित की जाती है । हमने यहाँ बहुत संक्षेप में व्रतों का स्वरूप बताया है। इक्कीसवीं शताब्दी में जब इन्सान का जीवन अमर्यादित हो रहा है, इस समय श्रावक - आचारसंहिता की कितनी आवश्यकता है यह स्वयं ही स्पष्ट है। पौषधोपवासव्रत - पर्व तिथियों में तपस्या करके, समस्त आरंभ से मुक्त होकर शरीर का ममत्व त्याग करके आठ प्रहर तक जो पौषध किया जाता है, वह परिपूर्ण पौषध है। श्रावक धर्मध्यान से ही पौषधकाल को पूर्ण करता है। इसमें मुनिजीवन का पूर्वाभ्यास किया जाता है। साधक की योग्यता को लक्ष्य में रखकर आध्यात्मिक साधना-पद्धति के विविध रूप उजागर हुए है, विविध सोपान निर्मित हुए है। श्रावक की साधना के भी तीन रूप बताए हैं- दर्शन श्रावक, व्रती श्रावक और प्रतिमाधारी श्रावक। यह क्रम क्रियायोग के उत्तरोत्तर विकास का क्रम है। गृहस्थ अपने आत्मिक विकास के लिए सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के बाद बारह व्रतों को धारण करता है, उसके बाद व अपने जीवन को और अधिक उन्नत और पवित्र बनाने के लिए ग्यारह प्रतिमाओं को ग्रहण करता है। अतिथिसंविभागव्रत - उपासकदशांगसूत्र की टीका में उचित रूप से मुनि आदि चारित्रसम्पन्न योग्य पात्रों को अन्नवस्त्र आदि का यथाशक्ति दान देने को अतिथिसंविभागव्रत कहा है। ४७६ Jain Education International सचित्त- दव्व-विग्गई, पन्नी - तांबूल - वल्थ कुसुमेसु । वाहण-सयण - विलेवण- बम्भ - दिशि नाहण भत्तेसु ।। उपासकदशांगसूत्रटीका - मुनिधासीलाल - पृष्ठ २६ । विधि - द्रव्य-दातृ-पात्र विशेषात् तद्विशेषः । - तत्वार्थसूत्र ७ / ३४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy