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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ २३५ पौद्गलिक सुख भोगों को प्राप्त करने का ही रहता है। गरलानुष्ठान से प्राप्त सुखभोगों में फंसा हुआ व्यक्ति जल पीने के लिए गया हुआ, किन्तु दलदल में फंसा हुआ उस हाथी के समान है, जो किनारे को देखते हुए भी उसे नहीं पा सकता है। वह कामभोगों के दुष्परिणाम को जानते हुए भी त्याग मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकता है। उत्तराध्ययन में संभूतिमुनि का दृष्टान्त आता है कि वह धर्मानुष्ठान के फल के रूप में चक्रवर्ती के भोगों की प्राप्ति का निदान कर लेता है और चक्रवर्ती पद को प्राप्त करके भोगों में आसक्त होकर भयंकर पापों का उपार्जन करके सातवीं नरक में जाता है। उस सुख की आशा क्या करना, जिसके पीछे दुःख हों। इसीलिए उपर्युक्त दोनों ही अनुष्ठान हेय हैं, त्यागने योग्य है। उ. यशोविजयजी कहते हैं- "विभिन्न प्रकार के अनर्थों को उत्पन्न करने वाले इन दोनों अनुष्ठानों को निषेध करने के लिए जिनेश्वरों ने फलाकांक्षा (नियाणा) करने का निषेध किया है।"४१२ शुभ भाव से किया हुआ कठोर तप कभी भी निष्फल नहीं जाता है। उस तप के बदले में कोई फल की इच्छा करना या फल को मांगना वह निदान कहलाता है। निदान तीन प्रकार के होते हैं। १. प्रशस्तनिदान २. भोगकृतनिदान ३. अप्रशस्तनिदान। सामान्यतः मनुष्य तप के फल के रूप में संभूति मुनि की तरह भोगरूपी निदान बांधता है। तप के फल के रूप में यदि अग्निशर्मा की तरह किसी की हत्या करने का या अहित करने को निदान करे तो वह अप्रशस्त निदान कहलाता है- मोक्ष गति प्राप्त हो, भव-भव में आपके चरणों की सेवा प्राप्त हो..... आदि, ये प्रशस्त निदान कहलाते हैं। (किसी अपेक्षा से प्रशस्तनिदान दोष रूप नहीं है।) इस प्रकार भोग-सुख की प्राप्ति की इच्छा से किए जाने वाले विषानुष्ठान और गरलानुष्ठान आत्मविकास में और अंत में मोक्ष प्राप्ति में प्रतिबंधक होते हैं। चित्तसंभूतीय-१३ वाँ अध्ययन-उत्तराध्ययन निषेधायानयोरेव विचित्रानर्थदायिनो। सर्वत्रैवानिदानत्वं जिनंन्दैः प्रतिपादितम् ।।७।। -सदनुष्ठान अधिकार, अध्यात्मसार, उ. यशोविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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