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________________ २२२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री अधिकार का उपयोग करना चाहे, और कर्त्तव्य नहीं निभाये तो भी संघर्ष उत्पन्न होता है, उसी प्रकार परिवार में प्रेम से रहने के लिये परिवार का पालन पोषण करने के लिए केवल बुद्धि की ही नहीं बल्कि हृदय की भी महती आवश्यकता रहती है। अनेकान्तवाद बुद्धि और हृदय में गाड़ी के दो पहियों की तरह सन्तुलन बनाए रखता है। "अनेकान्तवाद का सिद्धान्त दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन के विरोधों के समन्वय की एक ऐसी विधायक दृष्टि प्रस्तुत करत है, जिससे मानव जाति के संघर्षों के निराकरण में सहायता मिल सकती है।"३६६ __ वास्तव में अनेकान्तवाद सत्य-पथ प्रदर्शक है, जगत् का गुरु है। विभिन्न विवादों को सुलझाने वाला, सत्य निर्णय देने वाला अनेकान्तवाद जगत् का न्यायाधीश है। ३८६. डॉ. सागरमल जैन अभिनंदन ग्रंथ - स्याद्वाद और सप्तभंगी एक चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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