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१६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
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षष्ठ अध्याय :
क्रियायोग की साधना १. क्रियायोग का स्वरूप २. शुद्ध क्रिया और अशुद्ध क्रिया
शुभ व्यवहार और अशुभ व्यवहार ४. ज्ञान होने पर भी क्रिया की आवश्यकता
क्रियायोग का प्रयोजन ६. ज्ञान का परिपाक क्रिया में ७. क्रियायोग की साधना-विधि
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सप्तम अध्याय :
साम्ययोग की साधना १. साम्ययोग का स्वरूप २. समत्व आत्मस्वभाव ३. विषमता के कारण
ममता के विभिन्न रूप रागद्वेष और कषाय समता के तीन स्तर-सम, संवेग, निर्वेद समता और माध्यस्थभाव
साम्ययोग और सामायिक ६. ज्ञानयोग, भक्तियोग और क्रियायोग का साम्य में समन्वय १०. योग की साधना के परिणाम
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