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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / २१३
अपलाप नही कर सकते हैं। कोई भी मतवाद ( नयवाद ) विरोधी कैसे हो सकते हैं, वह तो उसी का अंश है । ८३६७
व्यावहारिक पक्ष मे अनेकांतवाद :
व्यावहारिक जगत् में अनेकान्तवाद के महत्त्व को दर्शाते हुए सिद्धसेनदिवाकर ३६८ भी कहते हैं- "मैं उस अनेकान्तवाद को नमस्कार करता हूँ, जिसके बिना जगत् का व्यवहार नहीं चल सकता है । सत्य की प्राप्ति की बात तो दूर, समाज और परिवार के सम्बन्धों का निर्वाह भी अनेकांतवाद के बिना नहीं होता है। अनेकान्त सबकी धुरी में है, इसलिए वह समूचे जगत् का गुरु और अनुशास्ता है। समग्र सत्य और समग्र व्यवहार उसके द्वारा ही अनुशासित हो रहा है, इसलिए मैं अनेकांतवाद का नमस्कार करता हूँ। व्यवहार का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ अनेकांतदृष्टि के बिना काम नहीं चलता है। परिवार के एक ही पुरुष को कोई पिता तो कोई पुत्र, कोई काका तो कोई दादा, कोई भाई, कोई मामा आदि नामों से पुकारता है। एक व्यक्ति के सन्दर्भ में विभिन्न पारिवारिक संबंधों की इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
अनेकांत वह सूत्र प्रदान करता है जिससे भविष्य की सम्भावनाओं का आकलन कर अतीत से बोधपाठ लेते हुए वर्तमान में जिया जा सकता है। अनेकांत अनागत भविष्य को अस्वीकार नहीं करता है, अतीत के पर्यायों को ध्यान में रखता है और दोनों का स्वीकार कर वर्तमान पर्याय के आधार पर व्यवहार का निर्णय करता है। जो व्यक्ति अनेकान्त को जानता है, वह कभी दुःखी नही होता है । उसका लाभ अलाभ, जय-पराजय, निंदा-प्रशंसा, जीवन-मरण सभी के प्रति समभाव रहता है, वह अपना सन्तुलन नहीं खोता है । "
३६७ नयाः परेषां पृथगेकदेशाः क्लेशाय नैवाऽऽर्हतशासनस्य ।
३६८
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सप्तार्चिषः किं प्रसृताः स्फुलिग्ड भवन्ति तस्यैव पराभवाय ।।२ ।। ब्यालश्चेद् गरुढं प्रसर्पिगरलज्याला जयेयुर्जवाद् गृहृयुर्द्विरदाश्च यद्यतिहठात् कण्ठेन कण्ठीवरम् । सूरं चेत् तिमिरोत्कराः स्थगयितुं व्यापारयेधुर्वलं ।
बध्नीयुर्बत दुर्नयाः प्रसृमराः स्याद्वादविधां तदा । । १ । । - स्याद्वादकल्पलता -७ - यशोविजयजी
जेण बिना लोगस्य ववहारो सव्वहाण निव्वडइ ।
तस्य भुवणेवकागुरुणो, णमो अर्णेगंतवास्स । - सन्मति - तर्क-प्रकरण- ३/७०, सिद्धसेनदिवाकर
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