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२०४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
___ अतः आध्यात्मिक क्षेत्र में अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का वही स्थान है, जैसे तारों के मध्य चन्द्रमा का। जिसके हृदय में अनेकान्त बसा हुआ है, उसका हृदय हमेशा समता, सहिष्णुता तथा शान्ति के दिव्य प्रकाश से आलोकित रहता है।
एकान्तवाद की समीक्षा और अनेकान्तवाद की व्यापकता
अनेकान्तवाद का आध्यात्मिक क्षेत्र में क्या स्थान है? इसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। वैसे तो अनेकान्तवाद की व्यापकता इतनी है कि कोई भी क्षेत्र उससे अछूता नहीं है। चाहे धार्मिक क्षेत्र हो या सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र हो या अन्य कोई भी क्षेत्र, अगर अनेकान्त सिद्धान्त स्वीकार नहीं किया जाए, तो कई विवाद खड़े हो जाते हैं, जिन्हें अनेकान्त को स्वीकार किए बिना सुलझाया भी नहीं जा सकता है। समग्र भारतीय दार्शनिक चिन्तन की पृष्ठभूमि में अनेकान्तिक दृष्टि रही हुई है, चाहे उन्होंने अनेकान्त के सिद्धान्त को सम्यक प्रकार से नहीं समझा हो और उसकी आलोचना की हो। अनेकान्तवाद का विरोध करने वाले एकान्तवादियों के कुतर्क एवं कुयुक्तियों का अनेकान्तवाद द्वारा निराकरण कर देने पर उनकी वापस एकान्तवाद में प्रवेश पाने की क्षमता समाप्त हो जाती है। उनके लिए भी अपने एकान्तवाद की त्रुटियाँ दूर करने के लिए स्याद्वाद का ही आश्रय लेना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति बिल्ली को छोड़ने जंगल में जाता है और स्वयं ही घर का रास्ता भूल जाने से उसी बिल्ली के पीछे-पीछे ही वापस घर लौटता है।
सापेक्षवाद से बहिर्भूत निरपेक्ष एकान्तवाद की प्रतिष्ठा कभी नहीं की जा सकती है। अनेकान्तवाद की कुक्षि में रहकर ही सापेक्ष एकान्तवाद का जन्म सम्भव है। एकान्तवादी के दर्शनों में भी अनेकान्त किस तरह समाया हुआ है, यह जानने से पहले एकान्तवाद किसे कहते हैं। यह समझना आवश्यक है।
____ एकान्तवाद किसी एक दृष्टि का ही समर्थन करता है। चाहे वह दृष्टि सामान्य की हो या विशेष की, नित्यता की हो या अनित्यता की, जो लोग सामान्य का ही समर्थन करते हैं, वे अभेद को ही जगत् का मौलिक तत्त्व मानते है और भेद को मिथ्या कहते हैं। उनके विरोधी भेदभाव का समर्थन करने वाले अभेद को सर्वथा मिथ्या समझते हैं। सद्वाद का एकान्तरूप से समर्थन करने वाले किसी भी कार्य की उत्पत्ति या विनाश को वास्तविक नहीं मानते। दूसरी ओर असवाद के समर्थक प्रत्येक कार्य को नया मानते हैं। वे कहते हैं कि कारण में कार्य नहीं
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