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________________ १४ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री समर्पण ममाशीर्वचनम : आचार्य श्री विजय जयन्तसेन सूरि (i) (ii) (iii) भूमिका : साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री प्रथम अध्याय : उपाध्याय यशोविजयजी का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व उपाध्याय यशोविजयजी का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व गृहस्थ जीवन : १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. अनुक्रमणिका द्वितीय अध्याय : १. २. ३. ४. ५. ६. ७. अध्यात्मवाद का अर्थ एवं स्वरूप अध्यात्मवाद का व्युत्पत्तिपरक अर्थ अध्यात्मवाद का उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा गृहीत सामान्य अर्थ नैगम आदि सप्त नयों की अपेक्षा से अध्यात्म का स्वरूप निश्चय अध्यात्म तथा व्यवहार अध्यात्म का स्वरूप ८. ६. यशोविजयजी के व्यक्तित्त्व के विशिष्ट गुण : साहित्य-साधना : मुनि जीवन : जिनशासन की प्रभावना : मोहब्बत खान के समक्ष अठारह अवधान का प्रयोग उपाध्याय पद की प्राप्ति २८ उपाध्याय यशोविजयजी की विद्वत्ता से खंभात के पंडितों का परिचय २६ कालधर्म ३० ३० ५१ अध्यात्म का स्वरूप अध्यात्म के अधिकारी अध्यात्म के विभिन्न स्तर धर्म और अध्यात्म भौतिकसुख और अध्यात्म Jain Education International 3 N9 For Private & Personal Use Only ३ ५ १६ १६ २० २८ २८ ५३ ५३ ५५ ५७ ६५ ६५ ६६ ७३ ७६ ७६ www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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