________________
उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ १३ बटोरते हुए अपने शोधपादप का सिंचन किया, मै हृदय से आदरपूर्वक उनका स्मरण करती हूँ।
श्री चेतनजी सोनी, व्याख्याता, उ.मा. वि., शाजापुर के प्रति भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, जिन्होंने प्रूफ रिडिंग कर बेटियों को सुधारने में सहयोग प्रदान किया।
मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, जैन विद्या तथा वाङ्मय की सेवा के लिए प्रख्यात साहित्यकार डॉ. तेजसिंहजी गौड़ के प्रति जिन्होंने सर्वप्रथम मुझे शोधकार्य हेतु प्रेरित किया। सांसारिक पिता श्री रमेशचन्द्रजी औरा एवं माता श्री प्रेमलता औरा के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ, जिन्होंने बचपन से ही मुझे आध्यात्मिक संस्कारों से आप्लावित किया। जिनका जीवन मेरे लिए हमेशा प्रेरणास्पद बना। शोधकार्य के लिए भी उनका अनिर्वचनीय प्रेरणा व सहयोग रहा।
प्रकाशचन्द्र गादिया, राजमलजी चत्तर, प्रकाशचन्द्र रूनवाल, विनयकुमारजी डोशी, संजय औरा एवं सांकला परिवार आदि श्रद्धाशील व्यक्तियों का पूर्णतः सहयोग प्राप्त हुआ है, अतः मैं उनकी आभारी हूँ। पंकज रूनवाल, डॉ. दिपाली रूनवाल, श्रीमती चन्द्रकान्ता गादिया आदि का पुस्तकें उपलब्ध करवाने में महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा, मैं उनके भी प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। प्राच्य विद्यापीठ के एक स्तम्भ प्रो. राजेन्द्रकुमार जैन के आत्मीय सहयोग को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।
जालोर त्रिस्तुतिक संघ, बड़नगर श्रीसंघ, मोदरा श्रीसंघ, धाणसा श्रीसंघ, एवं भीनमाल एवं शाजापुर श्रीसंघ के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ। जिन्होंने अध्ययन हेतु सदैव सहयोग एवं प्रेरणाएँ दी है।
प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर में उपलब्ध आवास-निवास पुस्तकालय आदि की सभी सुविधाए इस शोधकार्य में सहायभूत रही है। टंकण कार्य में विनय भट्ट का सहयोग भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। अतः उनके प्रति भी आभार।
साध्वी प्रीतिदर्शना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org