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________________ १२ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री परम पूज्या गुरुवर्याद्वय डॉ. प्रियदर्शनाश्रीजी एंव डॉ. सुदर्शनाश्रीजी म. के चरणों में कोटि कोटि वन्दना करती हूँ। जिनके आशीर्वाद ने मुझे सदैव पुरुषार्थ के लिए प्रेरित किया है। मेरी गुरुवर्याद्वय ने भी डॉ. सागरमलजी जैन के निर्देश में ही आज से पच्चीस वर्ष पूर्व शोधकार्य सम्पन्न किया था । मेरी सृजन यात्रा में जिन्होंने सतत अनुग्रह आशीर्वाद बरसाया उन पूज्या वात्सल्यनिर्झरा, मालवमणि स्वयंप्रभाश्रीजी एंव मम जीवनोपकारी सरल स्वभावी, मातृवत्सला, प. पूज्या कनकप्रभाश्री जी म. के चरणारविन्दों में मैं अहोभावपूर्वक नतमस्तक हूँ। उनके आभार ज्ञापन हेतु मेरी लेखनी असमर्थ है। उनके स्नेहिल सहयोगपूर्ण क्षणों को अनेक जन्मों तक अपने हृदयकोश में सन्चित रख कर ही मेरे मन को आनंद मिलेगा। इस मंगल अवसर पर प. पू. दर्शितगुणा श्री जी म. को भी नहीं भूल सकती, जिन्होंने अध्ययन हेतु सदैव मुझे प्रेरित किया। मेरी दीक्षा के पूर्व से परिचित, प्रतिभासम्पन्न प. पू. विनीतप्रज्ञाश्रीजी ( खरतरगच्छ ) को भी इस अवसर पर याद करना आवश्यक समझती हूँ, और शत-शत वंदना प्रेषित करती हूँ, जिन्होंने एम. ए. परीक्षा के अध्ययन के समय आत्मीय सहयोग दिया। उनका यह सहयोग स्मृति के धरातल पर सदैव जीवित रहेगा । पू. स्नेहसरिता अमिझराश्रीजी को कोटिशः वंदन के संग हृदय के उद्गारों को कृतज्ञता रूप में ज्ञापित करती हूँ, जिनके प्रेरणास्पद पत्र मुझे अध्ययन हेतु सदैव जाग्रत करते रहे। ज्ञानपिपासु अध्ययनरता स्नेह सिक्ता अनुजा रुचिदर्शनाश्रीजी जिनके अनुसंधान कार्य में निरन्तर विनयान्वित सेवांए रही। सर्वथा स्तुत्य है । मै उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके उनकी सेवाओं का अवमूल्यन करना नहीं चाहती । भविष्य में भी उनकी विनययुक्त सेवाभावना सदैव बनी रहे यही मंगल कामना करती हूँ। जब शोधप्रबंध का कार्य चल रहा था उस समय विद्यापीठ में पं. पू हर्षयशा श्री जी म.सा., पू. सौम्यगुणा श्री जी आदि ठाणा ५ यहाँ विराजमान थे। जिनका अनिर्वचनीय सहयोग सम्प्राप्त हुआ। दीक्षार्थी सोनाली और उनका श्रद्धा समर्पण एवं समय-समय पर दिया गया अपूर्व सहयोग कभी विस्मरण नहीं कर सकती। मैं उन सभी महापुरुषों, जैन- जैनेतर ग्रंथकारों, विचारकों, लेखकों, गुरुजनों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापन करती हूँ जिनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन चिंतन मनन अनुशीलन कर मैने उनसे प्राप्त ज्ञान के सुधाकणों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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