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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / १५६ है- "क्रियारहित अकेला ज्ञान मोक्षरूपी फल को साधने के लिए असमर्थ है। मार्ग को जानने वाला भी कदम आगे बढ़ाए बिना, अर्थात् गति किए बिना इच्छित नगर में नहीं पहुँच सकता है।”२६१ जहाँ क्रिया होती है, वहाँ ज्ञान होता है और जहाँ ज्ञान होता है, वहाँ क्रिया होती है। पुष्प में जैसे सुगंध समाई हुई है, वैसे ही ज्ञान में क्रिया समाविष्ट है । यह बात जरूर है कि एक गौण रूप में होता है, तो दूसरा प्रध्ज्ञानरूप में। कर्मयोग में क्रिया प्रधान है और ज्ञान गौण, ज्ञानयोग में ज्ञान प्रधान है और क्रिया गौण । कर्मयोग की योग्यता तब तक नहीं आती है, जब तक ज्ञानयोग की योग्यता नहीं आती है। 'नाणचरणेण मुक्खो ' - ज्ञान सहित चारित्र द्वारा ही मोक्ष होता है। इसी बात को अधिक स्पष्ट करते हुए उ. यशोविजयजी कहते हैं- “दीपक स्वयं प्रकाशरूप है, तो भी जैसे तेल डालने आदि की क्रिया करनी पड़ती हैं, उसी प्रकार स्वयं के स्वभाव में स्थित रहने की क्रिया तो पूर्ण ज्ञानी को भी करना जरूरी है। २६२ शास्त्रकार ने जिस प्रकार का क्रियामार्ग बताया है, श्रद्धा सहित उस मार्ग में प्रवृत्ति करना क्रियायोग कहलाता है । जिनशासन में कही हुई चरण सत्तरी एवं करण सत्तरी रूप सभी आचार मोक्ष के उपाय होने से योगरूप ही हैं, किंतु उ. यशोविजयजी ने ज्ञानसार में “स्थान, वर्ण, अर्थ, आलम्बन और एकाग्रता - ये पाँच प्रकार के योग बताए हैं, जिनमें से स्थान और वर्ण को उन्होंने कर्मयोग कहा है। " २६३ उन्होंने अध्यात्मोपनिषद् में कहा है- "ज्ञानयोग का आराधक प्रारंभ में जिन साधनों को ग्रहण करता है, वे ही साधन योगसिद्ध पुरूष के स्वभाव से लक्षण बन जाते क्रियाविरहितं हन्त! ज्ञानमात्रमनर्थकम् गतिं बिना पथज्ञोऽपि नाप्नोति पुरमीप्सितम् ।। २ ।। - क्रियाष्टक - ज्ञानसार - उ. यशोविजयजी २६२ २६१ २६३ स्वानुकूलां क्रिया काले ज्ञानपूर्णोऽप्यपेक्षते प्रदीपः स्वप्रकाशोऽपि तैलपूर्त्यादिकं यथा । । ३ । । -क्रियाष्टक - ज्ञानसार मोक्षेणयोजनाद्योमः सर्वोप्याचार इष्यते । विशेषस्थानवर्णार्थालम्बनैकाग्रयगोचरः । । १ ।। योगाष्टक - ज्ञानसार - उ. यशोविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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