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१४२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
जीव जिन-जिन साधनों के द्वारा अपने आत्मस्वरूप को प्राप्त करता है तथा उन साधनों का आत्मा से एकत्व किस प्रकार है, अर्थात् साध्य और साधन भिन्न-भिन्न है या अभिन्न? आदि प्रश्नों के सम्बन्ध में आगे विवेचन है। - जिन साधनों के द्वारा साधक साध्यदशा को प्राप्त होता है, उन साधनों का वर्णन करते हुए उत्तराध्ययन में कहा गया है- "ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के मार्ग का अनुसरण करने वाले जीव उत्कृष्ट सुगति (मोक्ष) को प्राप्त करते हैं।" २१३ यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र में “सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र- इन तीनों को ही मोक्षमार्ग माना है"२१४ तथा तप को चारित्र का ही एक अंग माना है, तथापि उत्तराध्ययन में तप को जो पृथक् स्थान दिया, उसका कारण यह है कि तप कर्मक्षय का विशिष्ट साधन है। साधनापथ और साध्य- दोनों ही आत्मा की अवस्थाएँ हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने अध्यात्मसार में कहा है- "जब ज्ञान-दर्शन और चारित्र के साथ आत्मा की एकता सध जाती है, तब कर्म जैसे क्रोधित हो गए हों, इस तरह आत्मा से अलग हो जाते हैं।"२१५ जब आत्मा स्वयं के ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप स्वभाव में स्थिर हो जाती है, तब कर्मों के रहने के लिए कोई अवकाश नहीं रहता है। 'रत्नत्रयं मोक्षः', अर्थात् रत्नत्रय मोक्ष हैं। उ. यशोविजयजी कहते हैं- "कर्मक्षय तो द्रव्यमोक्ष है। यह आत्मा का लक्षण नहीं है। द्रव्यमोक्ष के हेतुभूत आत्मा का रत्नत्रय से एकत्व ही भावमोक्ष है।"२१६
नियमसार की टीका में कहा गया है- “आत्मा को ज्ञानदर्शन रूप जान और ज्ञानदर्शन को आत्मा जान।"२७ इसका तात्पर्य यही है कि ज्ञानदर्शनादि आत्मा से भिन्न नहीं हैं, आत्मा का ही स्वरूप है।
डॉ. सागरमल जैन साधनापथ और साध्य को अभिन्न बताते हुए कहते हैं- “जीवात्मा अपने ज्ञान, अनुभूति और संकल्प के रूप में साधक कहा जाता
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नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गई।। उत्तराध्ययन २८/३ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः19।। -तत्वार्थसूत्र -उमास्वाति ज्ञानदर्शनचारित्रैरात्मैक्यं लभते यदा
कर्माणि कुपितानीव भवन्त्याशु तदा पृथक् ।।१७६ ।। -आत्मनिश्चयाधिकार -अध्यात्मसार -उ. यशोविजयजी २६. द्रव्यमोक्षः क्षयः कर्मद्रव्याणां नात्मलक्षणम्।
भावमोक्षस्तु तद्धेतुरात्मा रत्नत्रयान्वयी।।१७८ ।। -आत्मनिश्चयाधिकार -अध्यात्मसार -उ. यशोविजयजी २४७. आत्मानं ज्ञानदृग्रूपं विद्धि दृग्ज्ञानमात्मकं -नियमसार की टीका -पद्मप्रभमलधारि
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