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८/ साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
अवश्य होगी किन्तु क्षणिक तृप्ति की पहाड़ी में अतृप्ति का लावा रस बुदबुदाहट करता रहता है। आज मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं के बीच में भी अतृप्ति का अनुभव कर रहा है, क्योंकि वह आध्यात्मिक मूल्यों को भूल चुका है। सम्यक् समझ के अभाव में स्व को भूलकर शरीर के स्तर पर ही सारा जीवन केन्द्रित हो गया है। अधिकाशं मनुष्यों का दृष्टिकोण पदार्थवादी हो गया है आध्यात्मिक मूल्यों का निरंतर ह्रास हो रहा है। वर्तमान में वर्धमान समस्याओं का समाधान तब ही हो सकता है कि जब व्यक्तियों को ठीक मार्गदर्शन मिले जिससे उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आए, उनकी जीवन शैली में सुधार हो । यह मार्गदर्शन अध्यात्मज्ञान ही दे सकता है। आध्यात्मिक जीवनशैली ही व्यक्ति को अंशाति, हिंसा, क्रूरता, उपभोक्तावाद, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, प्रदूषण आदि के खतरों से बचने के लिए संयम का सुरक्षा कवच प्रदान कर सकती है।
अध्यात्म के अभाव में सम्पूर्ण विद्या वैभव, विलास, विज्ञान शांति देने में समर्थ नहीं है । आज तनाव ग्रसित वातावरण में अध्यात्म की आवश्यकता महसूस की जा रही है। आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। सुखप्रद, शांतिप्रद, कल्याणप्रद, संतोषप्रद जीवन व्यवहार हेतु अध्यात्म की आवश्यकता को देखते हुए डॉ. सागरमलजी जैन के निर्देशान में मैने यह विनम्र प्रयास किया है। उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा प्रस्तुत अध्यात्म के विभिन्न सिद्धान्तों के स्वरूप को प्रस्तुत करने हेतु इस शोध प्रबन्ध को 'नो अध्यायों' में विभाजित किया गया है।
प्रथम अध्याय उपाध्याय यशोविजयजी के व्यक्तित्त्व एंव कृतित्त्व से सम्बन्धित है। उपाध्याय यशोविजयजी विक्रम की सत्रहवी शताब्दी में एक विद्वान एवं एक आध्यात्मिक संत के रूप में प्रसिद्ध हुए । उन्होने धर्म, दर्शन, अध्यात्म, न्याय, योग आदि सभी पक्षों पर बहुत ही सूक्ष्मता से चिन्तन किया है। उनके जीवन के विषय में अनेक दंतकथाएँ एवं किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। इस अध्याय में उनके जीवन परिचय के साथ गुरुपरम्परा, विद्याभ्यास और उनकी साहित्यिक कृतियों का परिचय दिया है।
द्वितीय अध्याय में अध्यात्मवाद का अर्थ एंव स्वरूप पर प्रकाश डाला गया। इसके अन्तर्गत अध्यात्मवाद का व्युत्पत्ति परक अर्थ, अध्यात्मवाद का उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा गृहीत सामान्य अर्थ, नैगम आदि सप्तनयों की अपेक्षा से अध्यात्म का स्वरूप चित्रित करते हुए अध्यात्म के अधिकारी कौन हो सकते है ? इसका वर्णन किया है। अध्यात्म के विभिन्न स्तर बताए है। धर्म और अध्यात्म में क्या अंतर है ? धर्म और अध्यात्म किस भूमिका पर एक हो
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