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११२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
नीललेश्या :
नीलम के समान नीला और सौंठ से अनंतगुना तीक्ष्ण पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा में जो परिणाम होते हैं, वह नीललेश्या कहलाती है। “जो ईर्ष्यालु, कदाग्रही, प्रमादी, रसलोलुपी और निर्लज्ज होता है, वह नीललेश्या
परिणामी है।।१४७
कापोतलेश्या :
कबूतर के गले के समान वर्ण वाली और कच्चे आम के रस से अनन्त गुण कसैले पुद्गलों के सम्बन्ध से आत्मा के जो परिणाम होते हैं, वह कापोतलेश्या कहलाती है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार अत्यधिक हँसने वाला, दुष्ट वचन वाला, मत्सर स्वभाव वाला, आत्मप्रशंसा और परनिंदा में तत्पर, अतिशोकाकुल, कापोतलेश्या से युक्त होता है। तेजोलेश्या (पीतलेश्या) :
हिंगुल के लाल पके हुए आम्ररस से अनन्तगुना मधुर पुद्गलों के संयोग से आत्मा में जो परिणाम होते हैं, वह तेजोलेश्या कहलाती है। गोम्मटसार में इसके लिए पीत लेश्या शब्द प्रयुक्त हुआ है। "महत्त्वाकांक्षारहित प्राप्त परिस्थिति में प्रसन्न रहने की स्थिति को पीतलेश्या या तेजोलेश्या कहा गया हैं।"१४८ पद्मलेश्या :
हल्दी के समान पीले तथा शहद से अनंतगुना मधुर पुद्गलों के संयोग से आत्मा के जो परिणाम होते हैं, वह पद्मलेश्या कहलाती है। उत्तराध्ययन के
१४७. इम्मा अमरिस-अतवो, अविज्ज-माया अहीरिया य
गेद्धी पओसे य सढे, पमत्ते रस-लोलुए साय गवेसए ।।२३।। -उत्तराध्ययन सूत्र
-अध्ययन ३४ १४८. गोम्मटसार /अधि. १५/गा./५१४
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