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१०४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
नहीं बनाया जा सकता हैं कि जो द्रव्य प्रतिमा योग्य हैं, उन सभी की प्रतिमा बनती ही है और जो जीव भव्य हैं, वे मोक्ष जाते ही हैं।"१३५
इसे और अधिक स्पष्ट करने के लिए विशेषावश्यकभाष्य में दृष्टान्त देते हुए कहा गया है कि "स्वर्ण और स्वर्णपाषाण के संयोग में वियोग की योग्यता होने से स्वर्ण को स्वर्णपाषाण से अलग किया जा सकता है, परंतु सभी स्वर्णपाषाण से स्वर्ण अलग नहीं होता है। जिन्हें वियोग की सामग्री मिलती है, उन्हीं से स्वर्ण अलग होता है।"१३६ इसी प्रकार चाहे सभी भव्य मोक्ष में न जाएं, लेकिन मोक्ष जाने की योग्यता भव्य में ही मानी जाती है। अभव्य में मोक्षगमन की योग्यता का अभाव होता है।
प्रश्न यह उठता है कि जातिभव्य जीव कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते, तो क्या उन्हें अभव्य ही कहना चाहिए?
यह बात सत्य है कि जातिभव्य जीव और अभव्य जीव दोनों ही मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते, किंतु जातिभव्य को अभव्य नहीं कह सकते हैं। जातिभव्य को विधवा स्त्री की उपमा दी है। जिस प्रकार शादी के तत्काल बाद पति का मरण होने पर पति का संयोग नहीं होने से संतानोत्पत्ति की योग्यता होने पर भी संतानोत्पत्ति संभव नहीं है; उसी प्रकार जातिभव्य जीवों को मोक्ष जाने की योग्यता होने पर भी उन्हें अनुकूल सामग्री का योग नहीं मिलता है। अभव्य जीव को बांझ स्त्री की उपमा दी है। निमित्त का योग मिलने पर भी बांझ स्त्री में संतानोत्पत्ति की योग्यता ही नहीं है, उसी प्रकार अभव्य जीवों को अनुकूल सामग्री निमित्तों का योग तो बहुत मिलता है, यहाँ तक कि वे संयम ग्रहण करके कठोरता से उसका पालन भी करते हैं; किंतु उनमें मोक्ष जाने की रुचि या श्रद्धा ही प्रकट नहीं होती है, इसीलिए स्वरूप और तत्त्व की दृष्टि से जातिभव्य और अभव्य जीव को एक जैसा नहीं मान सकते हैं। अभव्य जीव बाबड़े मूंग की तरह होते हैं। प्रश्न यह उठता है कि संसार में से सभी भव्य जीव मोक्ष में चले जाएंगे तो फिर अंत में संसार में क्या केवल जातिभव्य और अभव्य ही रहेंगे? भव्य जीवों का उच्छेद हो जाएगा जैसे धान्य के भण्डार में से थोड़ा-थोड़ा धान्य निकालते रहने से वह खाली हो जाता है, वैसे ही भव्य जीवों के क्रमशः मोक्ष जाने पर संसार में भव्य जीवों का अभाव हो जाएगा। उपाध्याय यशोविजयजी इसका उत्तर देते हुए कहते हैं
१३५. 'मिला प्रकाश खिला बसंत' -आचार्य जयंतसेनसूरि १३६. जह वा स एव पासाण -कणगजोगो विओगजोग्गो वि
न विजुज्जइ सब्बोच्चिय स विउज्जइ जस्स संपत्ती -विशेषावश्यकभाष्य -१८३५
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