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________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ १०५ वस्तु अनादि होती है, वह अनंत भी होती है। जैसे जीव और आकाश का सम्बन्ध अनादि हो, तो उसे अनंत भी स्वीकारना पड़ेगा; उसी प्रकार जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि हो, तो वह अनंतकाल तक रहेगा; तब फिर मोक्ष की संभावना कहाँ से हो? उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं- “मोक्ष नहीं है-इस प्रकार कहना असंबद्ध है, क्योंकि कारण कार्यरूप में बीज और अंकुर की तरह, देह और कर्म के बीच में संबंध संतानरूप में अनादि है।"१२७ विशेषावश्यकभाष्य में भी इसके बारे में स्पष्टीकरण करते हुए कहा गया है कि "शरीर एवं कर्म की सन्तान अनादि है, क्योंकि इन दोनों में कार्य-कारण भाव है, बीज अंकर की तरहा,१२८ जैसे बीज से अंकुर और अंकुर से बीज यह क्रम अनादि से आरम्भ है, इसलिए बीज और अंकुर की संतान अनादि है; उसी प्रकार शरीर (जीव) से कर्म और कर्म से शरीर की उत्पत्ति का क्रम अनादिकाल से चला आ रहा है, इसलिए इन दोनों की सन्तान भी अनादि है। ___ जिस प्रकार "बीज और अंकुर, मुर्गी और अंडे के सम्बन्ध की तरह स्वर्ण और मिट्टी का संयोग भी अनादि है, फिर भी अग्नि तापादि से, इस अनादि संयोग का भी नाश संभव है, उसी प्रकार जीव और कर्म का संयोग अनादि होने पर भी तप संयमादि उपायों द्वारा कर्म का नाश होता है; अर्थात् कर्म आत्मा से अलग हो जाते हैं और जीव तथा कर्म का संबंध अनादि-सांत बना सकते है। “अनादि-सान्त की यह व्यवस्था भव्य जीवों के लिए है। अभव्य जीव और कर्म का सम्बन्ध आकाश और आत्मा की तरह अनादि और अनंत है।"२६ १२७. तदेतदव्यसंबद्धं यन्मिथो हेतुकार्ययोः संतानानादिता बीजांकुरवद्देहकर्मणोंः।।६५ ।। मिथ्यात्वत्यागाधिकार -अध्यात्मसार-उ. यशोविजयजी १२८. संताणो परोप्परं हेउ हेउभावाओ। देहस्स य कम्मस्सय मंडिय! बीयंकुराण -विशेषावश्यकभाष्य -१८१३ १२६. भव्येषु च व्यवस्थेयं संबंधो जीवकर्मणोः अनाद्यनन्तोऽभव्यानां स्यादात्माकाशयोगवत् ।।६८ / मिथ्यात्वत्यागाधिकार-अध्यात्मसार-उ. यशोविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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