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१०४/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
महावीर ने गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए आत्मा को शाश्वत और अशाश्वत-दोनों कहा है।
"भगवन! जीव शाश्वत है या अशाश्वत? गौतम! जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। भगवन्! यह कैसे कहा गया कि जीव नित्य भी है
और अनित्य भी? गौतम! द्रव्य की अपेक्षा से जीव नित्य है और भाव
की अपेक्षा से अनित्या"१२४ अमोक्षवादी मत की समीक्षा
अमोक्षवादी इस प्रकार कहते है- “आत्मा को कर्म का कोई बन्ध नहीं होता है, तो फिर मोक्ष की बात कैसे हो सकती है, अर्थात मोक्ष नहीं है।"१२५ वे गलत तर्क करके पूछते हैं कि “आत्मा और कर्म का सम्बन्ध हआ, तो पहले आत्मा थी, उसके बाद कर्म उत्पन्न हुआ, या पहले कर्म, उसके बाद जीव उत्पन्न हुआ, या ये दोनों साथ ही उत्पन्न होते हैं।"२५
ये तीनों बातें संभव नहीं हो सकती हैं, क्योंकि पहले आत्मा की उत्पत्ति मानें और फिर कर्म की उत्पत्ति, तो विशुद्ध आत्मा को कर्म से बंधने का कोई प्रयोजन नहीं। पुनः कर्ता (आत्मा) के अभाव में पहले कर्म भी उत्पन्न नहीं हो सकते। अगर कहें कि आत्मा तथा कर्म-दोनों एक साथ उत्पन्न हुए, तो यह भी असंगत है। इस प्रकार कर्मबंध अव्यवस्थित ठहरता है। जैनदर्शन कि मान्यता है कि जीव और कर्म का संबंध अनादिकाल से चला आ रहा है।
इसके लिए अमोक्षवादी यह तर्क देते हैं कि यदि जीव और कर्म के सम्बन्ध को अनादि माना जाए, तो जीव को कभी मोक्ष होगा ही नहीं, क्योंकि जो
१२४. जीवाणं भंते! किं सासया? असासया?
गोयमा। जीवा सियसासया, सिय असासया।। से केणद्वेणं भंते! एवं तुच्चइ -जीवा सिय सासया? सिय असासया?
गोयमा! दबद्वयाएँ सासया, भावट्ठयाए असासयां। -भगवतीसूत्र ७/२/५८, ५६ १२५. नास्तिनिर्वाणमित्याहुरात्मनः केडप्यबंधतः
प्राक् पश्चात् युगपद्वापि कर्मबंधाव्यवस्थिते।।३।। (४४६) मित्यात्वत्यागाधिकार
-अध्यात्मसार-उ. यशोविजयजी १२६. पुत्वं पच्छा जीवो कम व समं व ते होज्जा -विशेषावश्यकभाष्य गाथा -१८०५
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