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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 91 लक्षण भी दूषित हो जाता है, अतः, आपका यह अनुमान पूर्वोक्त अनुमान के समान ही निर्दोष नहीं हो सकता। जो पदार्थ वर्तमानकाल में अर्थक्रिया करने में समर्थ होता है, वह अतीत और भविष्य में भी अर्थक्रिया करने में समर्थ होना चाहिए। क्षायिक-पदार्थ तीनों कालों में अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं होता है। नित्य-पदार्थ ही वर्तमान, अतीत और भविष्यकाल में अर्थक्रिया करने में समर्थ होता है। बौद्ध - इस पर बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि जो वर्तमानकाल में क्रिया करता है, उसे उसी समय भूत-भविष्य में भी अर्थक्रिया करना चाहिए, यह मानना उचित नहीं है। युवावस्था में रहने वाला देवदत्त युवावस्था की क्रिया करते समय बाल्यावस्था और वृद्धावस्था की क्रिया करने वाला नहीं होता है। अतः, नित्य-पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं है। यदि आप (जैन) नित्य-पदार्थ को अर्थक्रिया करने में समर्थ मानेंगे, तो नित्य-पदार्थ एक समान स्थिर स्वभाव वाला होने से न तो पूर्वकाल में और न उत्तरकाल में कोई अर्थक्रिया कर सकेगा। अर्थक्रिया तो परिवर्तन या परिणमन की सूचक है। वह स्थिर स्वभाव की विरोधी है, अतः, नित्य-पदार्थ तीनों कालों में अर्थक्रिया करने में असमर्थ होता है। चूंकि स्थिर स्वभाव वाले नित्य-पदार्थ में कोई भी अर्थक्रिया (परिर्वतन) सम्भव ही नहीं है, इसलिए यदि नित्य-पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ हो, तो तीनों काल की क्रिया में एक ही समान होने का प्रसंग आएगा, अर्थात् तीनों कालों में कोई भी परिणमन या परिवर्तन नहीं होगा और यदि वह अर्थक्रिया करने में असमर्थ होगा, तो उन-उन काल में वह-वह अर्थक्रिया भी नहीं करने का दोष आएगा।" नित्य-पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ हो या असमर्थ, फिर भी उसमें क्रम से या एक ही साथ अर्थात अक्रम से अर्थक्रिया मानने में दोष होने के कारण नित्य-पदार्थ के अर्थक्रिया (कार्य) करने की संभावना नहीं रहती। पुनः, बौद्ध जैनों से कहते हैं कि यदि आप (जैन) अपना बचाव करने हेतु ऐसा कहते हैं कि पदार्थ स्वयं ही अपनी अर्थक्रिया करने में समर्थ होते हैं, तो हम बौद्धों का प्रश्न है कि क्यों वह अपेक्षणीय 48 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 702 49 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 703 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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