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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा बौद्ध 1 इस पर बौद्ध - दार्शनिक कहते हैं कि जो भी घट-पट आदि पदार्थ सत्-रूप कहे जाते हैं, वे सभी पदार्थ नियम से क्षणिक ही होते हैं तथा जो पदार्थ क्षणिक नहीं होते हैं, वे सत् भी नहीं होते, जैसेआकाशपुष्प का दूसरे सत् पदार्थों में ही अर्थक्रियाकारित्व-गुण रहा हुआ है । जिस पदार्थ में अर्थक्रिया करने की सामर्थ्य हो, वही पदार्थ सत् रूप होता है। दूसरे शब्दों में, सार्थक क्रिया अर्थात् अर्थक्रिया का होना ही सत्ता का स्वलक्षण है और वही पदार्थ की सत्ता है। ऐसा अर्थक्रियाकारित्व शब्दादि धर्मी (पक्ष) में प्रत्यक्षरूप से रहा हुआ है। शब्द, घट, पट आदि पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ हैं, जैसे- शब्द स्वयं ही अपने वाच्य - विषय का ज्ञान कराने की क्रिया करने में, घट जल धारण की क्रिया करने में, पट शरीराच्छादन की क्रिया करने में समर्थ होते हैं । इसी अर्थक्रियाकारित्व के कारण ही ये सभी पदार्थ सत् और क्षणिक होते हैं 45 900 जैन इस पर जैन- दार्शनिक रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि आपका (बौद्धों का ) यह हेतु अनेकान्तिक हुआ। दूसरे शब्दों में, आपका यह हेतु अनेकान्तिक - हेत्वाभास से युक्त है, क्योंकि अर्थक्रियाकारित्व नित्य-पदार्थों और अनित्य-पदार्थों- दोनों में होता है ।" - बौद्ध इस पर बौद्ध - दार्शनिक यह प्रश्न करते हैं कि हमारे हेतु को आपने जो विपक्ष में व्यावृत्त या अनेकान्तिक बताया, उसका क्या प्रमाण है? 47 - जैन इसके उत्तर में, जैन- दार्शनिक रत्नप्रभसूरि बौद्धों से कहते हैं कि आप जिसे अर्थक्रिया कहते हैं, वह अर्थक्रिया क्रम से होती है ? या अक्रम से होती है ? अथवा क्रमाक्रम से होती है ? यदि आप सत् (सत्ता) को क्षणिक मानते हैं, तो उसमें क्रम से अर्थक्रिया भी नहीं हो सकती। इसी प्रकार, अक्रम से नहीं होती। चूंकि क्षणिक में क्रम संभव नहीं है, अतः, अर्थक्रिया भी नहीं हो सकती। इसी प्रकार, अक्रम से भी अर्थक्रिया संभव नहीं है, क्योंकि एक ही समय में उत्पाद, व्यय और अर्थक्रिया का करनाये तीनों कार्य संभव नहीं हैं। इसी प्रकार क्रमाक्रम से अर्थक्रिया मानने में भी परस्पर विरोध आता है, जिससे आपके क्षणिक सत् के क्रियाकारित्व का 45 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 702 46 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 702 47 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 702 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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