________________
88
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा रहने वाले द्रव्य को ऊर्ध्वता-सामान्य कहते हैं। कोई भी द्रव्य प्रतिक्षण पूर्वपर्याय से उत्तरपर्याय में परिवर्तित होता रहता है, किन्तु द्रव्य तीनों काल में अपने स्थायित्व गुण का त्याग नहीं करता है। तीनों काल में द्रव्य एकरूप में ही रहता है, उसको भी ऊर्ध्वता-सामान्य कहते हैं। उदाहरणस्वरूप, स्वर्ण-द्रव्य से कड़ा बना, कड़ा तुड़वाकर हार बनवाया, हार से कंगन और अंगूठी बनवाई गई, इन भिन्न-भिन्न पर्यायरूप नए-नए आभूषणों के बनने के बाद भी स्वर्ण अपने मूल रूप में वही बना रहता है, अर्थात स्वर्ण भिन्न-भिन्न पर्यायों में बदलते हुए भी सब आभूषणों में बना रहता है, यही ध्रुवता (नित्यता) ऊर्ध्वता-सामान्य कहलाती है। एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति के साथ जो सदृशता है, वह तिर्यक-सामान्य है। एक ही व्यक्ति में क्षण-क्षण बदलती हुई अवस्थाओं में भी व्यक्ति वही रहता है। इन परिवर्तन के बीच यह जो "वही बना रहता है, उसे ही ऊर्ध्वता-सामान्य कहते हैं।
ज्ञातव्य है कि रत्नाकरावतारिका में, जैनदर्शन एवं बौद्धदर्शन में द्रव्य और पर्याय को लेकर जो मतभेद हैं, उनकी समीक्षा की गई है। जैन-दर्शन के अनुसार पर्यायों का क्रमशः धारा के रूप में नित्य प्रवाह चलता रहता है, यही सभी पदार्थों में द्रव्य की ध्रौव्यता है, क्योंकि द्रव्य के आधार पर ही पर्यायों में कोई एक सत्ता है, जिसमें प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है। पूर्व-पूर्व पर्यायों का नाश तथा नए-नए पर्यायों का उत्पाद होता ही रहता है, इसे ही द्रव्य की धौव्यता कहते हैं, किन्तु यदि द्रव्य की ध्रौव्यता ही न हो, तो उसमें पर्यायों का उत्पाद और व्यय भी संभव नहीं होगा। बिना द्रव्य के पर्याय किसकी बनेगी और किसमें बनेगी ? चूंकि बिना द्रव्य के पर्याय नहीं बनती, तो बिना पर्याय के द्रव्य भी नहीं रहता। द्रव्य और पर्याय एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि द्रव्य ही नष्ट हो जाए, तो पर्याय संभव नहीं होगी, अर्थात् पर्याय बनेगी ही नहीं।
द्रव्य और पर्याय एक-दूसरे से भिन्न तत्त्व नहीं हैं, अतः, प्रत्येक पदार्थ में द्रव्य के कारण ध्रौव्यता (नित्यता) का गुण रहा हुआ है और पर्याय के कारण उत्पाद-व्यय है, किन्तु इसके विपरीत, बौद्ध-दार्शनिक द्रव्य की धौव्यता को नहीं मानते हैं। वे प्रतिक्षण उत्पाद और व्यय को ही
42 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 700, 701
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org