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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
अध्याय 3 बौद्धदर्शन के क्षणिकवाद की समीक्षा
बौद्धों के 'सर्वक्षणिकम्' के सिद्धान्त की समीक्षा
बौद्ध-पूर्वपक्ष - बौद्ध-दर्शन क्षणिकवादी या अनित्यवादी है। वह यह मानता है कि जगत् में कुछ भी नित्य या शाश्वत नहीं है। सत्ता प्रति समय परिवर्तनशील है। जिस तरह नदी की धारा सतत परिवर्तनशील है उसी तरह सत्ता भी सतत परिवर्तनशील है। महापरिनिर्वाणसूत्र में कहा गया है कि जो वस्तुनित्य या स्थायी जान पड़ती है, उसी तरह सत्ता भी सतत परिवर्तनशील है। महापरिनिर्वाणसूत्र में कहा गया है कि जो वस्तु नित्य या स्थायी जान पड़ती है, वह भी नश्वर है। जहाँ संयोग है, वहाँ वियोग है, जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु भी है। क्षणिकवाद के अनुसार, वस्तु दो क्षण भी एक जैसी नहीं होती है। वस्तु प्रतिक्षण बदलती रहती है। सत्ता का स्वभाव ही परिवर्तनशीलता है। बिना परिवर्तनशीलता को स्वीकार किए अर्थक्रियाकारित्व सिद्ध नहीं होता है और बिना अर्थक्रियाकारित्व के सत्ता नहीं है। यही क्षणिकवाद है।
रत्नाकरावतारिका के सातवें परिच्छेद में नय का वर्णन किया गया हैं। इसमें नय के सात प्रकार बताए गए हैं। नय के उन सात प्रकारों में से नैगम, संग्रह और व्यवहार- ये तीनों नय द्रव्यार्थिकनय के ही भेद हैं तथा ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत- ये चार नय पर्यायार्थिकनय के भेद
बौद्ध-दर्शन ऋजुसूत्र-नयाभास है
प्रस्तुत प्रसंग में बौद्धदर्शन को चतुर्थ ऋजुसूत्रनय पर आश्रित न कहकर ऋजुसूत्र-नयाभास बताया गया है। ऋजुसूत्रनय त्रिकालवी-द्रव्य का एकान्ततः निषेध नहीं करता है। वह तो भूत, भविष्य और वर्तमान- ऐसे
37 भारतीय दर्शन, - पारसनाथद्विवेदी, पृ. 81 38 वही, पृ. 81
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