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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
अध्याय 5 शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध में बौद्ध एवं अन्य - दार्शनिकों के मतों की समीक्षा शब्दार्थ-सम्बन्ध को लेकर विभिन्न पक्ष
शब्दार्थ-सम्बन्ध के विषय में बौद्ध-धर्मोत्तर का पूर्वपक्ष एवं उसकी समीक्षा
अध्याय 6 बौद्धों के अपोहवाद की समीक्षा
अपोहवाद : बौद्धों का पूर्वपक्ष
रत्नाकरावतारिका में रत्नप्रभसूरि की अपोहवाद की समीक्षा बौद्धों के अपोहवाद का सामान्य अर्थ उपसंहार
अध्याय 7 बौद्धों के निर्विकल्प - प्रत्यक्ष का खण्डन और प्रमाण की निश्चयात्मकता का प्रतिपादन
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मीमांसक के तादात्म्य - सम्बन्ध की रत्नप्रभसूरि द्वारा समीक्षा
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आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा तादात्म्य - सम्बन्ध की आलोचना 162 नैयायिकों का तदुत्पत्ति - सम्बन्ध और उसकी समीक्षा जैनों का वाच्य - वाचक- सम्बन्ध उपसंहार
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अध्याय 8 प्रत्यभिज्ञा, तर्क एवं स्मृति की अप्रमाणता के संबंध में
बौद्धमत की समीक्षा
(अ) प्रत्यभिज्ञा की अप्रमाणता का बौद्धों का पूर्वपक्ष बौद्धों के प्रत्यभिज्ञा की अप्रमाणता के सम्बन्ध में
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प्रमाण की अवधारणा का पूर्वपक्ष
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रत्नप्रभसूर द्वारा बौद्धों के निर्विकल्प - प्रत्यक्ष की समीक्षा 208 भारतीय-दर्शन में प्रत्यक्ष के सम्बन्ध में विभिन्न अवधारणाएँ
डॉ. धर्मचन्द के अनुसार बौद्ध दर्शन में प्रत्यक्ष-प्रमाण
का लक्षण निष्कर्ष
रत्नप्रभ की समीक्षा
जैनाचार्य विद्यानन्द द्वारा भी प्रत्यभिज्ञा की प्रमाणता का
स्थापन
(ब) जैनों के तर्क - प्रमाणता की बौद्धों द्वारा समीक्षा जैनों के तर्क-प्रमाण का स्वरूप
तर्क - प्रमाण के खंडन हेतु बौद्धों का पूर्वपक्ष एवं उसकी समीक्षा
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व्याप्ति - सम्बन्ध की सिद्धि हेतु अविरुद्ध उपलब्धिरूप जैनों द्वारा मान्य हेतु के छः भेदों की बौद्धों द्वारा की गई समीक्षा
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