________________
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
290
292
बौद्धों का पूर्वपक्ष
260 बौद्धों के पूर्वपक्ष की सिद्धि हेतु प्रज्ञाकर के तर्क 261 बौद्धों के पूर्वपक्ष की पुष्टि की युक्तियों की रत्नप्रभसूरि द्वारा की गई समीक्षा
261 स्मृति की प्रमाणता का निषेध और उसकी समीक्षा 266 निष्कर्ष
267 अध्याय 9 बौद्ध-सम्मत श्रवणेन्द्रिय की अप्राप्यकारिता और उसकी समीक्षा 270 बौद्धों का पूर्वपक्ष
270 रत्नप्रम द्वारा श्रवणेन्द्रिय की अप्राप्यकारिता की समीक्षा 274 निष्कर्ष
274 अध्याय 10 बौद्धों के सामान्य के निषेध की अवधारणा की समीक्षा 277
जैनों की सामान्य की अवधारणा और बौद्धों के द्वारा उसकी समीक्षा
277 बौद्धों द्वारा सामान्य को काल्पनिक मानने की रत्नप्रभ द्वारा समीक्षा बौद्ध-दर्शन की विशेष की अवधारणा की रत्नप्रभ द्वारा समीक्षा
उपसंहार अध्याय 11 बौद्धों के त्रिलक्षण हेतु की समीक्षा
300 बौद्धों का पूर्वपक्ष
303 बौद्धों एवं नैयायिकों के पूर्वपक्ष
303 बौद्धों के हेतु के त्रिलक्षण एवं नैयायिकों के पंचलक्षण का विवेचन
(अ) पक्षधर्मत्व (ब) सपक्षसत्व (स) विपक्ष-असत्व
304 (द) अबाधित-विषयत्व
305 (ई) असत्-प्रतिपक्षत्व
306 रत्नाकरावतारिका में बौद्धों के विलक्षण एवं नैयायिकों के पंचलक्षण हेतुवाद की समीक्षा
307 उपसंहार
314 अध्याय 12अनुमान में पक्ष की आवश्यकता के संबंध में
बौद्धमत की समीक्षा जैनों द्वारा प्रस्तुत बौद्धों का पूर्वपक्ष
318 रत्नप्रभसूरि द्वारा प्रस्तुत बौद्धों का पूर्वपक्ष और उसकी समीक्षा
319 अनुमान में पक्ष की अनावश्यकता संबंधी बौद्ध-मंतव्य की समीक्षा327 (अ) भारतीय-दर्शन में अनुमान के अवयव
327 (ब) पक्ष की अनावश्यकता के संबंध में बौद्धों के
303
303
318
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org