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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
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गुणरत्नकृत षड्दर्शनसमुच्चय की टीका में बौद्ध-दर्शन की समीक्षा
उपसंहार अध्याय 2 रत्नाकरावतारिका और उसके कर्ता रत्नप्रभसूरि : एक परिचय
जैन-दर्शन एवं न्याय के ग्रन्थों में रत्नाकरावतारिका का स्थान रत्नाकरावतारिका के कर्ता और उनका काल रत्नाकरावतारिका के कर्ता के गुरु वादिदेवसूरि का काल रत्नाकरावतारिका के कर्ता रत्नप्रभसूरि की कृतियाँ
(अ) नेमिनाहचरिय (नेमिनाथ-चरित्र) (ब) दोघट्टीवृत्ति
(स) रत्नाकरावतारिका रत्नप्रभसूरि की गुरु-परम्परा एवं उनके गुरुभ्राता रत्नाकरावतारिका के लेखन का प्रयोजन रत्नाकरावतारिका की विषय-वस्तु
उपसंहार अध्याय 3 बौद्ध-दर्शन के क्षणिकवाद की समीक्षा
बौद्धों का 'सर्वं क्षणिकम् का सिद्धान्त (पूर्वपक्ष) बौद्ध-दर्शन ऋजुसूत्र नयाभास है बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा बौद्ध-मंतव्य की रत्नप्रभसूरि द्वारा की गई समीक्षा बौद्ध-दार्शनिकों का प्रतिप्रश्न जैनों का समाधान बौद्धों द्वारा पुनः स्वपक्ष का मण्डन रत्नप्रभ की समीक्षा बौद्धों द्वारा स्वपक्ष का समर्थन रत्नप्रभसूरि द्वारा बौद्ध-युक्तियों की समीक्षा जैनों का उत्तरपक्ष बौद्ध-सन्तानवाद और उसकी समीक्षा
132 उपसंहार
133 अध्याय 4 बौद्ध-अनात्मवाद का स्वरूप और समीक्षा
त्रिपिटक-साहित्य में प्रस्तुत अनात्मवाद (पूर्वपक्ष) 135 बौद्ध-अनात्मवाद का अर्थ आत्म-सन्ततिवाद
139 रत्नाकरावतारिका में बौद्धों के आत्म-सन्ततिवाद की समीक्षा
141 (अ) बौद्धों का पूर्वपक्ष
141 (ब) जैनों का उत्तरपक्ष
143 उपसंहार
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