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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा को ब्रह्माद्वैतवादियों के समान बताना समुचित नहीं है, क्योंकि जब जड़-चेतन रूप पदार्थों से भिन्न 'ब्रह्म' नाम का कोई पदार्थ ही नहीं है, तब ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि सभी पदार्थ वास्तविक नहीं हैं ? विशेष के पक्षधर बौद्ध-मत का खण्डन करते हुए रत्नप्रभ द्वारा यह चर्चा की गई है कि जिस प्रकार ब्रह्माद्वैतवाद के खण्डन में आप बौद्धों ने जो यह तर्क दिया कि ब्रह्म नाम की कोई वस्तु नहीं हैं, उसी प्रकार आपके विरोध में सदृशपरिणामरूप -- सामान्य के बिना भी संसार में स्वलक्षण नाम का कोई पदार्थ ही नहीं है । पुनः, पदार्थ सर्वप्रथम सामान्य रूप में ही जाना जाता है, तथा संसार के प्रत्येक पदार्थ को शून्यरूप मानने पर तो विशेष को भी शून्यरूप ही मानना होगा, अतः, विशेष की स्वतंत्र सत्ता कैसे सिद्ध होगी, ऐसी बौद्ध-मत की समीक्षा रत्नप्रभ द्वारा की जाने की चर्चा मिलती है । बौद्धमत द्वारा पुनः प्रत्येक पदार्थ को प्रतिक्षण परिवर्तनशील माने जाने की चर्चा है, प्रतिक्षण बदलती नई पर्याय विशेष रूप में ही लक्षित होने की चर्चा है, अतः, विसदृशाकारता ही पदार्थ का यथार्थ - लक्षण माने जाने की चर्चा और अत्यन्त भिन्न पदार्थों में 'सदृशपरिणामता' (सामान्य) को नहीं माने जाने की बौद्ध-मत की चर्चा की गई है । पुनः, बौद्धमत की समीक्षा में रत्नप्रभ द्वारा पदार्थ की सामान्य - विशेषात्मक अर्थात् उभयात्मक माने जाने की चर्चा है। क्योंकि प्रत्येक पदार्थ में कथंचित्-भिन्नता भी है तथा कथंचित्- समानता भी फलतः रत्नप्रभ द्वारा प्रत्येक पदार्थ में सामान्य (सदृशपरिणामता) और विशेष (विसदृशपरिणामता ) -- दोनों ही संभव होने की चर्चा के साथ ही रत्नप्रभ द्वारा बौद्धों को सामान्य और बाह्यार्थ की सत्ता को स्वीकार किए जाने की चर्चा की गई है। रत्नाकरावतारिका के पंचम परिच्छेद में सामान्य के दो भेदों की चर्चा है- तिर्यक् - सामान्य और ऊर्ध्वता - सामान्य । तिर्यक् - सामान्य की चर्चा पूर्व में की जा चुकी है। पूर्व पर्याय और उत्तरपर्याय में, अर्थात् तीनों काल में द्रव्य के एक ही अवस्था में अपने स्थायित्व - गुण में रहने को ऊर्ध्वता - सामान्य कहे जाने की चर्चा है । ज्ञातव्य है कि रत्नाकरावतारिका में जैन- दर्शन एवं बौद्धदर्शन में द्रव्य और पर्याय को लेकर जो मतभेद हैं, उसकी समीक्षा की जाने की चर्चा है । सर्वप्रथम, जैन- दर्शन द्वारा प्रत्येक पदार्थ में द्रव्य और पर्याय- दोनों तत्त्वों के रहने की चर्चा है। प्रत्येक पदार्थ में द्रव्य की धौव्यता है, तो पर्यायों का परिवर्तन- गुण भी रहा हुआ है, अर्थात् पर्याय के कारण उत्पाद-व्यय-धर्म को भी माने जाने की चर्चा है, किन्तु बौद्ध - दार्शनिक द्वारा द्रव्य की धौव्यता को नहीं माने जाने की भी Jain Education International 67 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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