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________________ 58 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा पश्चात, रत्नप्रभ ने प्रतिषेध (अभाव) के चार प्रकार- 1. प्राग्भाव 2. प्रध्वंसाभाव 3. इतरेतराभाव और 4. अत्यन्ताभाव बताते हुए इनकी व्याख्या भी प्रस्तुत की है। तत्पश्चात्, रत्नप्रभ ने उपलब्धि हेतु के दो भेद किए हैं1. अविरुद्धोपलब्धि और 2. विरुद्धोपलब्धि। पुनः, अविरुद्धोपलब्धि के छह भेद किए गए हैं- 1. साध्याविरुद्ध-व्याप्योपलब्धि, 2. साध्याविरुद्धकार्योपलब्धि 3. साध्याविरुद्ध-कारणोपलब्धि, 4. साध्याविरुद्ध-पूर्वचरोपलब्धि, 5. साध्याविरुद्ध-उत्तरचरोपलब्धि 6. साध्याविरुद्ध-सहचरोपलब्धि। बौद्ध-दार्शनिक अविरुद्धोपलब्धि के व्याप्य और कार्यहेतु- ये दो ही भेद मानते हैं, जबकि शेष 1. कारण 2. पूर्वचर 3. उत्तरचर और 4. सहचर आदि चारों को हेतु नहीं मानते हैं। आचार्य रत्नप्रभ ने विविध उदाहरणों के माध्यम से तार्किक रूप से बौद्ध-दार्शनिक-मत की समीक्षा की है तथा अविरुद्ध-कार्य, कारण, पूर्वचर, उत्तरचर और सहचर-उपलब्धि- इन पाँचों को अपना समर्थन प्रस्तुत किया है। तत्पश्चात्, विरुद्धोपलब्धि के 7 भेद बताए गए हैं- 1. स्वभावविरुद्धोपलब्धि 2. विरुद्धव्याप्तोपलब्धि 3. विरुद्धकार्योपलब्धि 4. विरुद्ध-कारणोपलब्धि 5. विरुद्ध-पूर्वचरोपलब्धि 6. विरुद्ध-उत्तरचरोपलब्धि 7. विरुद्ध-सहचरोपलब्धि, इसके साथ ही उत्तरपक्ष के रूप में उन्होंने अपना मत भी प्रस्तुत किया है। उपलब्धि के समान ही अनुपलब्धि के भी दो भेद बताए गए हैं- 1. अविरुद्धानुपलब्धि और 2. विरुद्धानुपलब्धि। पुनः, अविरुद्धानुपलब्धि सात प्रकार की बताई गई है - 1. अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि 2. अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि 3. अविरुद्धकार्यानुपलब्धि 4. अविरुद्धकारणानुपलब्धि 5. अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि 6. अविरुद्धउत्तरचरानुपलब्धि, 7. अविरुद्धसहचरानुपलब्धि एवं प्रत्येक की व्याख्या की चर्चा भी की गई है। इसके उपरान्त, अविरुद्धानुपलब्धि के समान विधि को सिद्ध करने वाली विरुद्धानुपलब्धि के पाँच भेद प्रस्तुत किए गए हैं- 1. विरुद्धकार्यानुपलब्धि 2. विरुद्धकारणानुपलब्धि 3. विरुद्धस्वभावानुपलब्धि 4. विरुद्धव्यापकानुपलब्धि 5. विरुद्धसहचरानुपलब्धि एवं इनकी उदाहरणों द्वारा चर्चा भी की गई है। इस प्रकार, प्रमाणनयतत्त्वालोक नामक पुस्तक पर श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा विरचित रत्नाकरावतारिका नामक लघु टीका में स्मरण, प्रत्यभिज्ञा, तर्क (ऊह) और अनुमान, इस प्रकार, परोक्ष-प्रमाण के पाँच भेदों में से प्रथम चार भेदों के स्वरूप का वर्णन इस तृतीय परिच्छेद में किया गया है। आगम-प्रमाण की चर्चा इस तृतीय परिच्छेद में नहीं की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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