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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 57 के संबंध में रत्नाकरावतारिका में चर्चा की गई है कि बौद्ध-दार्शनिक पक्ष का प्रयोग आवश्यक नहीं मानते हैं। उनके इस विरोध में रत्नप्रभ लिखते हैं कि यदि पक्ष का प्रयोग नहीं किया जाएगा, तो साध्य कहाँ सिद्ध किया जा रहा है, यह ज्ञात नहीं हो पाएगा। साध्य का नियत-पक्ष के साथ संबंध बताने के लिए पक्ष का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इसी के अगले सूत्र में बौद्धों के स्वभाव, कार्य और अनुपलब्धि- इन तीन प्रकार के हेतु मानने की चर्चा की गई है। इसके पश्चात्, रत्नप्रभ ने यह उल्लिखित किया है कि जिस प्रकार अनुमान द्वारा जानी हुई बात को शब्दों द्वारा कहना परार्थानुमान है, उसी प्रकार प्रत्यक्ष द्वारा भी जानी हुई बात को शब्दों द्वारा कहना परार्थानुमान है। यह परार्थ-प्रत्यक्ष भी शब्दात्मक होने के कारण उपचार से प्रमाण है। इसके पश्चात्, परार्थानुमान के अवयवों के संबंध में विभिन्न दार्शनिक-मतभेद हैं, जैसे कि सांख्य पक्ष, हेतु और दृष्टांत- ये तीन अवयव मानते हैं। मीमांसक उपनय के साथ चार अवयव मानते हैं और योग निगमन को मिलाकर कुल पाँच अवयव मानते हैं। रत्नप्रभ इन सबकी समीक्षा करते हुए पक्ष और हेतु- इन दो अवयवों का समर्थन करते हैं। इसके उपरान्त, रत्नाकरावतारिका में हेतु दो प्रकार के बताए गए हैं - 1. तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति। दृष्टांत को अनुमान का अवयव नहीं बताया गया है। तत्पश्चात्, व्याप्ति को दो प्रकार की बताते हुए 1. अन्तर्व्याप्ति और 2. बहिर्व्याप्ति- इनके स्वरूप की भी चर्चा की गई है। जैन-दर्शन के अनुसार, इसमें यह भी चर्चा की गई है कि किसी को बोध कराने के लिए दृष्टांत, उपनय और निगमन की आवश्यकता नहीं होती, अपितु पक्ष और हेतु, इन दोनों से ही पदार्थ का यथार्थ-बोध हो सकता है, साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया है कि मन्दबुद्धि वाले के लिए तो फिर भी दृष्टांत, उपनय और निगमन की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन बुद्धिमान् के लिए तो हेतु और पक्ष से काम चल सकता है। इसके पश्चात्, दृष्टांत के दो भेद किए गए हैं- 1. साधर्म्य-दृष्टांत और 2. वैधर्म्य-दृष्टांत। इन दोनों को उदाहरण द्वारा समझाया गया है और उपनय तथा निगमन की भी चर्चा की गई है। तात्पर्य यह है कि अनुमान के पाँचों अवयव पक्ष, हेतु, दृष्टांत, उपनय और निगमन- इनकी व्याख्या की गई है। इसके उपरान्त, आगे के सूत्र में रत्नप्रभ ने रत्नाकरावतारिका में अन्यथानुपपत्तिरूप हेतु के दो प्रकार बताए हैं- 1. उपलब्धिरूप और अनुपलब्धिरूप तथा इन दोनों से विधि और निषेधरूप- दोनों की ही सिद्धि होनी बताई गई है और इन दोनों की व्याख्या भी की गई है। इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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