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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 45 हुए। रत्नप्रभसूरि के गुरु वादिदेवसूरि का स्वर्गवास विक्रम संवत् 1221 अर्थात् ईस्वी सन् 1169 में लगभग 88 वर्ष की अवस्था में हुआ। इस आधार पर हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि वादिदेवसूरि के स्वर्गवास के समय रत्नप्रभसूरि कम से कम 40 वर्ष पूर्व दीक्षित हो चुके थे, क्योंकि रत्नप्रभसूरि का जो विभिन्न दर्शन-परंपराओं का व्यापक अध्ययन हुआ, वह एक दीर्घकालीन अवधि की अपेक्षा रखता है, साथ ही ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि इन्होंने वादिदेवसूरि के स्याद्वादरत्नाकर की रचना में भी अपना सहयोग प्रदान किया था, अतः, यह स्पष्ट है कि स्याद्वादरत्नाकर के रचनाकाल तक ये एक प्रौढ़ विद्वान् के रूप में स्थापित हो चुके थे। रत्नाकरावतारिका की पंजिका आचार्य राजशिखर ने लिखी थी। ये मलधारी अभयदेवसूरि के संतानीय तिलकदेवसूरि के शिष्य थे। चूँकि इन्होंने विक्रम संवत् 1405, तदनुसार ईस्वी सन् 1349 में प्रबंध-कोश की रचना की थी, अतः, रत्नाकरावतारिका की पंजिका की रचना भी इसी काल के आस-पास हुई थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि रत्नाकरावतारिका की रचना उसके लगभग 100-150 वर्ष पूर्व हो चुकी थी। रत्नाकरावतारिका में बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर एवं अर्चट के नाम आते हैं। धर्मोत्तर धर्मकीर्ति के शिष्य थे। इनका काल लगभग विक्रम की आठवीं शताब्दी माना जाता है। अर्चद धर्मोत्तर के भी पश्चात् हुए हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रत्नाकरावतारिका बारहवीं शताब्दी के बाद और तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध ही रची गई है। उसका रचनाकाल ईसा की बारहवीं शती का उत्तरार्द्ध होगा। इसके पूर्व वे ईस्वी सन् 1176 में 'नेमीनाहचरिय' और ईस्वी सन् 1182 में 'दोघट्टीवृत्ति की रचना कर चुके थे। इन दोनों कृतियों की रचना के पूर्व वादिदेवसूरि स्याद्वादरत्नाकर की रचना कर ईस्वी सन् 1169 में स्वर्गस्थ हो चुके थे। यह भी स्पष्ट है कि रत्नाकरावतारिका उनकी वृद्धावस्था की रचना है तथा यह ईस्वी सन् 1182 के बाद और ईस्वी सन् 1199 के पूर्व कभी रची गई होगी और लगभग यही समय उनके स्वर्गवास का रहा होगा। 4. रत्नाकरावतारिका के कर्ता रत्नप्रभसूरि की कृतियाँ - 1. नेमिनाहचरिय (नेमिनाथ-चरित्र) - जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह ग्रन्थ बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र से संबंधित है। यह महाराष्ट्रीय भाषा में लिखा गया है और उसका रचनाकाल विक्रम संवत् 1232 तदनुसार ईस्वी-सन् 1176 है। इस ग्रन्थ की रचना रत्नप्रभसूरि ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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