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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा के आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में उसी ग्रन्थ का आधार लेकर बौद्धों के त्रैरूप्य लक्षण का खंडन किया होगा।
जैन-दर्शन में हेतु को अन्यथानुपपन्न-लक्षण वाला बताने की परंपरा अत्यन्त प्राचीन है। जैसा हमने पूर्व में उल्लेख किया, यह परंपरा सिद्धसेन दिवाकर के न्यायावतार से प्रारंभ होती है। उसके पश्चात् अकलंक, विद्यानंद, कुमारनंदी, माणिक्यनंदी, वादिदेवसूरि आदि ने भी इसी का अनुसरण किया। हमारे समीक्ष्य ग्रंथ रत्नाकरावतारिका में भी रत्नप्रभसूरि ने विस्तार से बौद्धों के त्रैरूप्यहेतु-लक्षण की समीक्षा की है, किन्तु इस समीक्षा के पूर्व बौद्धों के रूप्यहेतु-लक्षण का पूर्वपक्ष के रूप में स्पष्टीकरण आवश्यक है।
बौद्धदर्शन में हेतु की त्रैरूप्यता का सर्वप्रथम प्रतिपादन दिङ्नाग ने न्याय-प्रवेश में किया है। दिङ्नाग अपनी रचना न्याय-प्रवेश में लिखते हैं कि हेतु त्रिरूप लक्षण वाला होता है। हेतु के रूप्य-लक्षण कौनसे हैं, इसको स्पष्ट करते हुए वे पुनः लिखते हैं कि पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व, विपक्षासत्व- ये ही हेतु के तीन लक्षण हैं। धर्मकीर्ति ने हेतुलक्षण में स्पष्ट किया है कि जिसका विशेष धर्म जानना इष्ट हो, वह अनुमेय ही हेतु कहा जाता है।
_ न्यायबिन्दु में इसे स्पष्ट करते हुए पुनः कहा गया है कि साध्य धर्म की समानता रखने वाले अर्थ को सापेक्ष कहा जाता है। सपक्ष अनुमेय होता है। इसके विरुद्ध, जो सपक्ष एवं अनुमेय नहीं होता है, उसे विपक्ष कहा जाता है। धर्मकीर्ति के अनुसार, सपक्ष से विरुद्ध या सपक्ष के अभाव वाला जो अन्य है, वह विपक्ष कहलाता है। धर्मकीर्ति के पश्चात धर्मोत्तर और अर्चट आदि ने भी इसी मत की पुष्टि की। धर्मोत्तर ने धर्मकीर्ति के न्याय-बिन्द की टीका में इस संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला है। उन्होंने धर्मकीर्ति के न्याय-बिन्दु के द्वितीय परिच्छेद के सूत्र क्रमांक 4, 5, 6 और 7 की टीका में इसे स्पष्ट किया है। यहाँ संक्षेप में- 1. पक्षधर्मत्व का अर्थ है कि हेतु को पक्ष में उपस्थित होना चाहिए। जैसे पर्वत पर अग्नि है, इस साध्य की सिद्धि के लिए जो धूम हेतु दिया जाता है, वह हेतु भी पर्वत पर उपस्थित होना चाहिए। अगर पर्वत पर धुआँ नहीं होगा, तो पर्वत पर अग्नि की सिद्धि नहीं होगी, इसलिए बौद्ध-दार्शनिकों का कहना है कि जहाँ अनुमेय की सिद्धि की जाती है, वहाँ हेतु की सिद्धि आवश्यक है। यदि पर्वत पर अग्नि की उपस्थिति को सिद्ध करना है, तो उसकी सिद्धि के
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