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________________ 394 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा और कुछ वैदृश्य होता है, यह सादृश्य ही सामान्य है और वैदृश्य ही विशेष है, अतः, वस्तु को सामान्य-विशेषात्मक मानना ही उचित है। प्रस्तुत शोधग्रन्थ के ग्यारहवें अध्याय में बौद्धों के त्रिलक्षण हेतु एवं नैयायिकों के पंचलक्षण हेतु की विवेचना है। भारतीय-दर्शन में अनुमान के पाँच अंग माने जाते हैं- 1. साध्य 2. हेतु 3. दृष्टांत 4. उपनय 5. निगमन। अनुमान के इन पाँच अंगों में सबसे प्रमुख अंग हेतु को माना गया है। वस्तुतः, साध्य की सिद्धि के लिए हेतु ही सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है। उदाहरण के रूप में, पर्वत पर अग्नि को सिद्ध करने के लिए यह कहा जाता है कि पर्वत पर धुआँ है। धूम के होने पर ही अग्नि की सिद्धि संभव है, अतः, इस उदाहरण में पर्वत पक्ष है, अग्नि साध्य है और धुआँ हेतु है। प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक अनुमान के लिए हेतु की उपलब्धि आवश्यक मानते हैं, किन्तु उस हेतु का स्वरूप या लक्षण क्या है, इसको लेकर भारतीय-दर्शन में विवाद देखा जाता है। न्याय-दर्शन हेतु के पाँच लक्षण मानता है। उसके अनुसार, हेतु के पाँच लक्षण निम्न हैं- 1. पक्ष-धर्मत्व 2. सपक्षसत्व 3. विपक्षासत्व 4. असत्-प्रतिपक्षत्व और 5. अबाधित-विषयत्व । नैयायिकों के विरुद्ध बौद्ध-दार्शनिक हेतु को त्रैरूप्य लक्षण वाला मानते हैं। बौद्ध-दार्शनिकों के अनुसार हेतु में पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व और विपक्षासत्वये तीन लक्षण ही आवश्यक हैं। वैशेषिक दर्शन और सांख्यदर्शन में भी हेत के इन्हीं तीन लक्षणों को स्वीकार किया गया है। यद्यपि यह बात विवादास्पद ही है कि त्रैरूप्य हेतु की अवधारणा सर्वप्रथम किसने प्रस्तुत की ? श्वैरवात्स्की के अनुसार, वैशेषिकों की अपेक्षा बौद्धों के त्रैरूप्य-लक्षण की कल्पना प्राचीन है, जबकि इसके विरुद्ध पं. सुखलाल संघवी का कहना है कि त्रैरूप्य लक्षण का प्रतिपादन वैशेषिकों ने ही किया था, फिर भी इतना तो निश्चित है कि हेतु के त्रैरूप्य लक्षण की प्रसिद्धि मुख्यतः बौद्धों के संदर्भ में ही है। नैयायिकों के पँचरूप हेतु बौद्धों के त्रैरूप्य हेतु के विरुद्ध जैनों ने हेतु का एक ही लक्षण माना है। जैन-दर्शन के अनुसार, अन्यथानुपपत्ति ही हेतु का एकमात्र लक्षण है। जैन-दर्शन में सर्वप्रथम सिद्धसेन ने अपने जैन-न्याय के प्रथम ग्रंथ न्यायावतार में अन्यथानुपपत्ति को ही हेतु का लक्षण बताया है। जैनों ने अपने अन्यथानुपपत्तिरूप हेतु की सिद्धि के लिए बौद्धों के त्रैरूप्यलक्षण का खंडन किया है। सर्वप्रथम, जैन-दार्शनिक पात्रस्वामी ने बौद्धों के त्रैरूप्यलक्षण हेतु के खंडन के लिए त्रिलक्षणकदर्शन नामक एक स्वतंत्र ग्रंथ ही लिखा था। यद्यपि यह ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है, किन्तु ऐसा लगता है कि उनके परवर्ती जैन-न्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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